परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
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में जानती हूँ
मैं तुममें ही हूँ
कहीं,
हाँ मग़र,
मुखर नहीं।
अंतर में गहरे
दबी रहती हैं
ज्यों जड़ें
और गहरे और गहरे
अतल में..
चुपचाप
पोसती हैं
अंतिम छोर को
फिर भी
एकाकार होकर भी
अभेद्य होकर भी
मुखर नहीं..।
———- #विजयलक्ष्मी जांगिड़
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