सावन की घटाएँ, जैसे गौरी की अदाएं। पहले गरजती है, फिर वो चमकती है। घनघोर घटाएँ, फिर वो बरसती है। किसी के दिल को, ठंडक पहुँचाती है। पिया बिन गौरी के, दिल को जलाती है। पानी में भीग-भीग, तन जो हो गीला। मन मचल जाए, झूले जब झूला। ठंडी ये […]

ह्रदय  को  वो  चाहे जितना  समझा ले, फिर भी तो  उसको  थोड़ा  दुःख  होगा। देखकर  हाथों  की  गीली  मेहँदी  को, आज स्वयं उसका मुख भी बेमुख होगाll               कंधे पर जो हाथ कभी  रखती  थी वो, हरी सौ चूड़ियों  से  कल भर  जाएगा। चढ़ा हुआ जो आंख तलक  एक आँसू, […]

मेरे देश के नौजवानों,शक्ति के दीवानों.. क्यों देश में हिंसा फैली है  क्यों काली हुई दिवाली है, कहाँ गई खुशहाली है.. हम हर इंसान से पूछते हैं, वह पहला हिन्दुस्तान ढूँढते हैं।   लाचारी न थी कहीं,बीमारी न थी कहीं,  खुशियों के डेरे थे,बहारों के फेरे थे.. कौन यहाँ पर […]

सरकारी सम्‍पदा से प्राप्‍त आय से बढ़े हुए पेट को तोंद कहते हैंl तोंद विकास का प्रतीक है। यह प्रतीक उतना ही पुराना है,जितनी पुरानी गरीबी। राज्‍य का विकास जानने के लिए तोंदवालों की गिनती होनी चाहिएlजितने तोंद वाले,उतना उस राज्‍य का विकासl विकास तोंद का प्रतीक और तोंद विकास का…विकास होगा तो भ्रष्‍टाचार होगा,भ्रष्‍टाचार होगा तो तोंद निकलेगी,यानी तोंदवाले को भ्रष्‍ट कहा जा सकता है,लेकिन जरूरी नहीं कि भ्रष्‍ट तोंदवाला हो। मोटा होना और तोंद वाला होना दोनों में फर्क हैl मोटा जन्‍मजात होता है,तोंदवाला ज्‍यादा खा-खाकर तोंदवाले की श्रेणी में आता है। बिना तोंदवाले भी भ्रष्‍ट हो सकते हैं। तोंद हो तो काशी और मथुरा के पंडो जैसी।भरपेट खाना खाने के बाद चार पूड़ी,एक गिलास रायता और एक कटोरा खीर तो चल जाएगी। तोंद पुलिसवालों की मशहूर होती है। पुलिस का पटटा तोंद में इस तरह समा जाता है-जैसे चावल में सफेद कंकड़,धनिए में लीद,फाइल में भ्रष्‍टाचार,सीमेंट में रेत और न जाने क्‍या-क्‍या? अकसर तोंद देखते ही मन के भाव बिगड़ जाते हैं। तोंदवाले से पत्‍नी परेशान होती है और होते हैं- बस वाले,रिक्‍शे वाले और रिश्‍तेवाले। तोंद होना सिद्ध करता है कि,आप आलस के मारे हैं या फिर रिश्‍वत के…,दोनों ही स्थितियां तोंद बढ़ाने में मददगार हैं। तोंद साम्‍प्रदायिक सदभाव काप्रतीक है।तोंद का विकास सम्‍प्रदायवाद से  होता है। जोसभी सम्‍प्रदाय का समान रूप से शोषण करता है,उस शोषण से तोंद का विकास होता है। तोंद गरीब आदमी कीनहीं होतीहै,किसान कीभी नहीं होती,सेना के जवानों की भी नहीं होती,तोंद नेताओं कीहोती है,सेठों की होती है,महिलाओं का पेट होताहै,तोंद नहीं होतीहैlपहाड़ों पर तोंद वाले नहीं दिखाई देते,गांवों में भी तोंद नहीं दिखाई देती,शहरों में नगर पालिका कार्यालय,रेलवे काउंटर,किराने की दुकान,कपड़े की दुकान पर तोंद देखने को आसानी से मिल जाती है। तोंद राष्‍ट्र विकास की मुख्‍यधारा है। राष्‍ट्रीय पशु,राष्ट्रीय पक्षी,राष्‍ट्रीय खेल की तरह हीतोंद को भी राष्‍ट्रीय विकास का प्रतीक बना देना चाहिए। वैसे अब तोंद पदोन्नतिप्रतीक बनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। तोंद होगी तो पदोन्नति नहीं होगी,तोंद नहीं होगी तो पदोन्नति होगी। तोंद,निकम्‍मेपन के प्रतीक के रूप में उभरकर सामने आ रही है। कुछ लोगों की तोंद देखकर लगता है,जैसे उन्‍हें खाने की जरूरत नहीं है तो,किसान का पेट देखकर लगता है,उसका खाना सब तोंदवाले खागएlबचपन में तोंद निकलना कुपोषण का लक्षण और अधेड़ अवस्था में तोंद का निकलना अनियमितता-असंतुलन-पेटू होने का प्रतीक है।तोंद पर विचार-विमर्श होना चाहिए। आदमी की कितनी तोंद होनी चाहिए,तोंद का मानदण्‍ड होना चाहिए। `जीएसटी` की तरह हीमानकीकरण होना चाहिए।४५इंची तोंद पर १२ प्रतिशत जीएसटी,५९ इंची पर १८ प्रतिशत और जिनके पिचके पेट हैं उन्‍हें `करमुक्‍त` रखना चाहिए।एक सर्वे होना चाहिए,जिसमें तोंद वालोंको कितने प्रतिशत महिलाएं पसंद करती है,कितने प्रतिशत लोग तोंद को अच्‍छा मानते हैं। तोंद बढ़ाने के प्रयासों पर कार्यशाला होना चाहिए-देश के लिए तोंदवालों का महत्‍व। यह भी तय होना चाहिए कि,मंत्री की कितनी तोंद होनी चाहिए,संतरी की कितनी,राज्‍यमंत्री की कितनी और प्रधानमंत्री को कितनी तोंदसे काम चलाना चाहिए। अधिकारी और बाबू को `तोंदकर` के दायरे में लाना चाहिए। सबसे ज्‍यादा तोंद कर सेठों से वसूलना चाहिए।         […]

वो बस एक पेड़ की तरह था, ऊँचे कद का जमीन से आसमान तक तना ही तना… एकदम चिकना रंगहीन पारदर्शी शाखाविहीन सिर्फ शीर्ष था बहुत घना, काला अभेद इतना,जितना मानसून से घिरा काला द्वीप बारिश की सारी संभावनाओं से रीता अभिशप्त जैसे सिर्फ उड़ने के लिए हल्की,काली,गन्दी हवाओं में; […]

न अँधेरों के किस्से न उजालों की बातें, कोई नींद में कर रहा है निवालों की बातेंl यहाँ भूख रक्स करती गरीबों के आँगन, अमीरों की आदत घोटालों की बातेंl कोई मन की बातें करता यहाँ पर, कहीं हो रही हैं सवालों की बातेंl कहीं भाई-चारे की चढ़ती रहती है […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।