हे पावन से दीप, धरा का तम हर दो। जग के कण-कण में, सुंदर आभा भर दो॥ राग-द्वेष का नाम, मिटे मानव मन से। निर्मल बुद्धि का जन, जन को वर दो॥ ज्ञान की सरिता, बहे फिर विश्व में। मरूभूमि के आंगन में, सागर कर दो॥ गीत गूँजे सदा, हर्ष […]
dube
धर्म-अधर्म, द्रोही-भक्त कुछ न, नीति-कुनीति है। देश जिससे ग्रसित है, बस क्षुद्र राजनीति है….॥ नीला-हरा, सफ़ेद-भगवा नयनाभिराम, सबरंग है। स्याह-सा जो दिख रहा, इसका ही बदरंग है….॥ धर्म-संस्कृति-लोकाचार, हो रहे,वार पर वार ‘मत’ जुटाने का भला, ये कैसा प्रबंध है! दिखती राह,जुदा-सी इनकी, पर भीतर,गहरा सम्बन्ध है….॥ […]