सड़क किनारे, बैठे देखा उनको, जो आती–जाती गाड़ियों पर, उम्मीद की निगाहों से, टकटकी लगाये.. चारपाई की दूकान पर, खिलौने सजाकर पोंछते रहते हैं दिनभर… उनकी धूल, जो सरपट दौड़ती गाड़ियाँ, तोहफ़े में दे जाती हर रोज़। जिस चारपाई पर रातभर सोया घर का मुखिया, पत्नी बालक सभी के लिये, […]
काव्यभाषा
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