बचपन में कभी हमें चुप बैठे देखा तो,
’क्या हुआ बेटा?’
यह पूछने वाली
वो मेरी माँ ही तो थी।
क से कमल A से Apple,
लिखने में जिसने मदद की।
मछली जल की रानी कविता जिसने सिखाई,
वो मेरी माँ ही तो थी।
स्कूल से आने पर,
पीठ पर बस्ते का बोझ देख,
जिसने पीठ को सहलाया,
वो मेरी माँ ही तो थी।
देर रात पढ़ते देख,
जिसने बालों को प्यार से सहलाया,
फिर सिर में तेल लगाया,
ऐसा करने वाली
वो मेरी माँ ही तो थी।
भीगी आँखों में ख़ुशी के आँसू भरे,
चुपचाप हॉस्टल भेजने वाली।
निस्तब्ध होंठ लिए,
वो मेरी माँ ही तो थी।
हर फ़ोन पर जिसने पहले एक ही सवाल किया,
’बेटा, खाना खाया?’
यह ख़्याल रखने वाली,
वो मेरी माँ ही तो थी।
सफलता के पैग़ाम सुनने को मिले,
इसके लिए जिसने हर पल,
ईश्वर को नतमस्तक किया,
वो सिर्फ़ मेरी माँ ही तो थी।
कभी देर से घर पहुंचे तो,
’कैसे बेटा इतनी देर!’
ये चिंता जताने वाली,
वो मेरी माँ ही तो थी।
इस तरह अरुणाई से लेकर,
चांदनी की तरुणाई तक।
आशीष सुरक्षा कवच बनी जो संग-संग रहती थी।
वो मेरी माँ ही तो थी।
#सीता गुप्ता
दुर्ग, छत्तीसगढ़