तू भी वही ,मैं भी वही,
तू अगर भ्रष्ट है,
तो मैं भी कहाँ शिष्ट हूँ ?
तू करता शोषण ,
मैं करता आत्मपोषण।
तू लूटता शंखनाद से,
मैं अवसर वाद से ।
तू जो करे ,वो भी सही ।
जो मैं करूँ, वो भी सही।
कौन किसको कहे ?
मैं भी वही, तू भी वही।।1।।
तू अगर व्यभिचारी है,
तो मैं भी अत्याचारी हूँ ।
तू जनों को बांटता,
मैं भी दिलों को बाँटता ।
तुझे रोके , किसी के दम नहीं,
मैं भी किसी से कम नहीं ।
जो तू कहे ,वो भी सही ।
जो मैं कहूँ ,वो भी सही ।
कौन किसको कहे ?
तू भी वही ,मैं भी वही।।2।।
तू खुश ,धरा वीरान कर,
मैं खुश ,कचरा भंडार कर।
कोई किसी पर अंकुश नहीं ,
न कोई किसी का मानता ।
कोई हमेशा मौन है ,
कोई सदा वाचाल सा ।
जो तू सुने, वो भी सही ।
जो मैं सुनूँ ,वो भी सही ।
कौन किसको कहे ?
तू भी वही ,मैं भी वही।।3।।
नाम-पारस नाथ जायसवालसाहित्यिक उपनाम – सरलपिता-स्व0 श्री चंदेलेमाता -स्व0 श्रीमती सरस्वतीवर्तमान व स्थाई पता-ग्राम – सोहाँसराज्य – उत्तर प्रदेशशिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।