कभी-कभी ज़िन्दगी के सफर में हमें ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिनसे मिलकर ऐसा लगता है शायद भगवान ने उन्हें हमारे लिए ही इस दुनिया में लाया है…
अभी कुछ दिन पूर्व ही मुझे एक बहुत प्रतिष्ठित संस्था के साथ जुड़ने का मौका मिला जो शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग करती है। एक नया काम, नए अनुभव के लिए मैंने उस काम को स्वीकार कर लिया। चूंकि संस्था जानी मानी थी तो ये तो तय था कि बहुआयामी व्यक्तिव के लोगों से मिलना होगा। मैं उत्साहित होने के साथ-साथ थोड़ी डरी भी थी कि कैसे लोग होंगे? पर थोड़ा सुकून इसलिए था कि फोन पर कॉन्फ्रेसिंग के जरिए हमारी बात हुई थी, साथ ही एक सदस्य प्रतिमा को मैं थोड़ा बहुत जानती थी। इसी कश्मकश में हम चार लोगों के समूह की दस दिवसीय कार्य की शुरुवात हुई। समूह में मेरा यह पहला ही टूर था, टीम की लीड थी, कविता कर्वे, एक खूबसूरत व्यक्तिव की मल्लिका, वो देखने में ही नहीं बल्कि दिल से भी बहुत खूबसूरत थी , प्रतिमा कुलकर्णी, शांत स्वभाव वाली सादगी पसंद महिला, जो मेरी मुरीद थी, कारण वो मेरी कविताओं को पसंद करती है, तीसरे सदस्य बहुत ही आकर्षक व्यक्तिव के धनी,गोरे चिट्टे, लगभग मेरे बेटे की उम्र के क्रस्टन डिसुझा, जो हमारे समूह में सबसे कनिष्ठ थे, उनके बारे में एक बात कहना चाहती हूँ कि इतनी कम उम्र में काम के प्रति निष्ठा ने मुझे काफी प्रभावित किया। हम एयरपोर्ट पर मिले, वही से हमने टैक्सी लेकर बेंगटोल (असम) के लिए यात्रा शुरू की,पहले तो सभी चुप थे, काफी औपचारिक माहौल था, पर लीड ने लीड ली और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया,बातों बातों में पता चला कि उनके अंदर भी एक लेखक और कवि विराजमान है, मुझे तो मानो जन्नत मिल गई और फिर शुरू हुआ कविता और अनूपा की कविताओं का दौर, दो कवियों और दो श्रोताओं की मौजूदगी में हमारी यात्रा रोचक बन पड़ी,लगभग सात बजे हम गंतव्य पहुंचे।खाना खाने के बाद हमने दूसरे दिन के काम के बारे में चर्चा की।
दूसरे दिन की शुरुवात काफी अच्छी रही, उस दिन बर्थडे भी था, सुबह सबसे पहले प्रतिमा ने मुझे मिठाई खिला कर मुँह मीठाकराया, पता नहीं कैसे लीड ने लीड लेकर प्रतिकूल परिस्थिति में मेरे लिए बर्थडे केक का जुगाड कर दिया, विपरीत परिस्थितियों में मनाया गया जन्मदिन मेरे लिए बहुत ही शानदार रहा…
सब कुछ ऐसा ही चलेगा सोचकर हमने आगे की तैयारी की,पर सोचा हुआ कभी नहीं होता, यही मेरे साथ हुआ,लगभग रात दो बजे मुझे पता चला कि मेरी सास को ब्रेन हेमरेज हुआ है,कंडीशन क्रिटिकल है,उस समय मेरी रूममेट,और नई सहेली प्रतिमा ने मेरा साथ दिया,लगभग पाँच बजे मैंने लीड को बताया उन्होंने मुझे सांत्वना दी और मेरे वापस गुवाहाटी जाने का इंतजाम करवाया।मुझे नाश्ता करके ही निकलने दिया। बीच बीच में प्रतिमा और लीड कविता के मेसेज आते रहते।उस समय मैंने महसूस किया कि रिश्ते बनने में उपर वाले का भी हाथ होता है,तभी तो मेरी मुलाकात इन लोगो से हुई,मेरे लिए तो वो एक मित्रता ही है,काश वो लोग भी मुझे अपना मित्र ही समझे।
ज़िन्दगी की इस किताब में मुझे कुछ और अच्छे लोग मिल गए, जिन्होंने मुझे अनजाने ही सही कुछ नया सिखा दिया… मेरे पापा अक्सर कहते हैं कि अच्छे बनो तो हमेशा अच्छे लोगों से ही मुलाकात होगी।
.#अनूपा हरबोला
विद्यानगर (कर्नाटक)