दोहा
माँ बेटी पत्नी सभी,
नारी के ही रुप।
भारत माँ के रुप मे
नारी दिव्य स्वरूप।।
चौपाई
गौरव शाली जीवन गाथा।
हम सबकी जो भाग्य विधाता।1।
नारी महिमा अपरंपारा।
जग से हरती जो अँधियारा।2।
शक्ति रूप धर दुर्गा बनती ।
लक्ष्मी रुप मे विपदा हरती।3।
सरस्वती माँ कंठ समाती।
जीवन को संगीत बनाती।4।
झाँसी रानी अमर कहानी।
बच्चा बच्चा कहे जुवानी।5।
नारी ममता की मूरत है।
समझो प्रभु की ही सूरत है।6।
नर के आगे नारी चलती।
घर के सब दुख संकट हरती।7।
नारी से नाराणय बनते ।
नारी से पारायण बनते।8।
नारी ही तो जीवन देती।
पर बदले मे कुछ न लेती।9।
आँगन की राँगोली बिटिया।
श्याम सलोनी सुंदर चुटिया।10।
मंगल कलश सजाती मुनिया।
महिमा गाती सारी दुनिया।11।
बेटी अपनी खूब पड़ेगी।
सारे जग मे फतह करेगी।12।
पर नारी के गुण न तजेगी।
संस्कार भारती तभी रहेगी।13।
घर को ही वह स्वर्ग बनाती।
बेघर का घर द्वार सजाती।14।
पत्नि स्वरूपा उत्तम नारी।
पति धर्म की नित सहचारी।15।
सास ससुर की सेवा करती।
उनके दुख संकट सब हरती।16।
दया नीर से नयन छलकते।
हया धीर धर नयन झपकते।17।
जया रुप धर नयन न झुकते।
नया रुप जब नयन मटकते।18।
नारी आरी सम जब होती।
सारी सीमाएँ जब खोती।19।
दहेज माँगती खुद भी देती।
अपनी बेटी एक चहेती।20।
नारी रक्षा की अगुआई।
समझे नारी पीर पराई।21।
तेरा मेरा भेद तजेगी।
नारी तब ही श्रेष्ठ बनेगी।22
नारी तब दीवाली तब है।
नारी जब खुशहाली तब है।24
नारी खुश धनवाली जब है।
नारी दुख बदहाली तब है।25
नारी मन को जो नर समझे।
नारी मन मे वो ना उलझे।26
नारी मन चंचल जो होता।
जो न समझे वो नर रोता।27
नारी जैसे बिजली चमके।
नारी जैसे मोती दमके।28।
नारी जैसे मेंहदी रँगले।
नारी वैसे दिल को रँगले।29।
नारी सृष्टि सृजन करती है।
नारी कष्ट शमन करती है।30।
नारी दुष्ट दमन करती है।
नारी सृष्टि चमन करती है।31।
नारी सुंदरतम क्यारी है।
नारी अनुपम जग न्यारी है।32।
नारी अतुलित वलधारी है।
नारी अतः नही हारी है।33।
नारी की.नारी मे आभा।
नर बनने का मात्र छलावा।34।
नर बन नारी क्या कर लेगी।
घर की खुशियाँ बस हर लेगी।35।
अपना देश भी माँ कहलाता।
नारी रुप मे पूजा जाता ।36।
जीवन दायी नदी स्वरुपा।
नारी का यह अद्भुत रूपा।37।
गौरवशाली देश हमारा।
तभी विश्व मे सबसे न्यारा।38।
नारी महिमा नारी महिमा।
सारी सृष्टि कहती जब माँ।39।
माँ के रुप को लिखते ज्ञानी।
‘अनेकांत’कवि तो अज्ञानी।40।
दोहा
नारी का सम्मान ही,
ईश्वर का सम्मान।
नारी का बहुमान तब
हर घर स्वर्ग समान।।
परिचय:नाम-राजेन्द्र जैन’अनेकांत’शिक्षा-ड्राप्ट्समेन(नाग.)एम.ए(दर्शन)जैनधर्म विशारदकार्यक्षेत्र -सहा.मानचित्रकारराजीव सागर परियोजना जल संसाधन विभाग क्र.3 कटंगी जि. बालाघाट(म.प्र.)सामाजिक क्षेत्र-सक्रिय भूमिकाविधा-छंद बद्ध एवं छद मुक्तरचना लेखनप्रकाशन १-माँ(१००८ पंक्ति की रचना)२-पर्यावरण सुधार दोहा शतक३-आद्याक्षरांजलि(२४तीर्थकर भगवंतो के २४ दोहाष्टक उनके नामाक्षर से सभी पंक्तिया प्रारंभ)४-देख पपीहा आसमाँ(माँ पर दोहा शतकसम्मान-अनेकअन्य उपलब्धियाँ-संतो का आशीर्वादलेखन का उद्येश-आत्म ए के साथ साथ लोकोपकार का भाव