मंगते से मिनिस्टरः बालकवि बैरागी

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vaidik
श्री बालकवि बैरागी का जैसा शांतिपूर्ण और गरिमामय महाप्रयाण हुआ, ऐसा कितनों का होता है? ऐसा सौभाग्य बिरलों को ही मिलता है। 87 वर्षीय बैरागीजी का कल अपने गांव मनासा से  नीमच आए, एक कार्यक्रम में भाषण दिया, काव्य-पाठ किया, अपने गांव लौटकर कुछ लोगों से मिले और अपरान्ह में आराम करने के लिए लेटे तो फिर उठे ही नहीं। वे भारत के वाचिक परंपरा के महान कवियों में से थे। गोपालदासजी नीरज और बालकवि बैरागी को जितने लोगों ने पिछले70-80 वर्षों में सुना होगा, उतना किसी प्रधानमंत्री को भी नहीं सुना होगा। इसलिए बैरागीजी को मैं लोककवि कहता था। उन्हें बालकवि नाम तो देश के गृहमंत्री कैलाशनाथ काटजू ने दिया था। नंदराम को बालकवि इसलिए कहा गया कि वे 7-8 साल की उम्र से ही कांग्रेंस के मंच पर खड़े होकर काव्य-पाठ करने लगे थे। मैंने उनकी माताजी और पिताजी, दोनों के कई बार दर्शन किए हैं। वे मध्य प्रदेश में विधायक बने, मंत्री बने और राज्यसभा में भी रहे। उन्होंने एक किताब भी लिखी थी, ‘मंगते से मिनिस्टर’। हमारे यहां मालवी भाषा में भिखारी को ‘मंगता’ कहते हैं। वे सच्चे कांग्रेंसी थे। वे हारे या जीते, उन्होंने कभी पार्टी नहीं बदली। वे जब पहली बार मुझसे मिलने आए, लगभग 45 साल पहले तो खाना खाने के बाद वे डाइनिंग टेबल के नीचे फर्श पर ही लेट गए, क्योंकि वह उन्हें ठंडा लग रहा था। वे कपड़े खरीदते नहीं थे। अपने मित्रों और प्रशंसकों द्वारा भेंट दिए गए कपड़े ही पहनते थे। पीटीआई के दफ्तर के सामने एक बंगले में वे रहते थे। हम लोग रोज ही मिलते थे। या तो मैं उनके यहां चला जाता था या वे मेरे दफ्तर आ जाते थे। स्व़  सुशील भाभी अद्भुत मेजबान थीं। मैं उनके नीमच और मनासा के घरों में भी जाता रहा। 10फरवरी को उनका जन्मदिन हम लोगों ने कई बार दिन भर कार में घूम-घूमकर मनाया। उनके कई काव्य-संग्रह, कहानी संग्रह,संस्मरण और एक उपन्यास भी छपा है। उन्होंने इंदौर के नई दुनिया और राजस्थान पत्रिका में कई लेख भी लिखे हैं। उन्होंने देर से ही सही एमए किया था। उनके दोनों बेटे भी काफी पढ़े-लिखे। बहुंए भी। उनकी पोती बड़ी अफसर है। एक चायवाला प्रधानमंत्री बनने पर गर्व कर सकता है तो एक मंगते का मिनिस्टर बनना तो उससे भी बड़ी बात है। मेरे इन अभिन्न मित्र को मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि!
                             #डॉ.वेद प्रताप वैदिक

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