तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है /
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है /
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है /
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है //
थक गया है हर शख़्स काम करते करते //
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है /
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं /
इस मशीनी दौर को परिवार कहता है /
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा /
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है //
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे /
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है /
बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें /
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है //
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में /
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है /
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं /
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है ……..//
वाह वाह क्या है ये जमाना , जिसको हम और आप २१ वी सदी जो कहता है /आप सभी को समर्पित है ये कविता जो हर इंसान कहता है और अपनी झूठी शान में ही फसा रहता है / आज भी हमारे गांव बहुत ही सुन्दर है शहरों की अपेक्षा / कभी किसी गांव में जाकर देखो क्या शहर से बढ़िया जीवन है गांव वालो का या शहर ही बढ़िया है /
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।