जब प्रलयकंर स्थितियां हों,
और चुनौती भेज रही हो
टकराने को तीरों से जब
नियति ढाल-सी बनी खड़ी हो,
दिग्भ्रमित कराने को तुमको
झंझावात खड़ा बद्ध हो
नैसर्गिक हो अथवा न हो
ऐसे में यदि मध्य हो, संघर्ष का फिर दांव खेलो।
सवार तरी पर होकर के,
बढ़ रहे पार जाने को जब
देख भंवर के क्रूर रोध को,
लड़ रहे स्वयं बच पाने को जब
उठतीं हो बार-बार ऊंची
डूबाने को जब नई लहर
अस्वीकृत कर दें सीमाओं को,
कराल काल-सी टूटें तुम पर
संघर्ष का फिर दांव खेलो।
निश्चित कार्य पूर्व का जो
सदृश्य नहीं हो पाता हो,
कभी अक्षमता तो कभी
अहम स्वयं का टकराता हो,
बोल रहा हो काल सामने
साथ कहां मेरा पाओगे,
बिकने वाली वस्तु नहीं कोई जो मूल्य चुकाकर लाओगे, विपरीत समय औ द्वन्द स्वयं से संघर्ष का फिर दांव खेलो।
सकल विश्व दे ठोकर भीषण,
जग से जाकर टकराने पर
समतल पर मिल जाए भूधर, निज का निर्मित पथ लाने पर कर अमान्य अस्तित्व तुम्हारा सम्मुख कोई विघ्न खड़ा हो, तुम्हें मिटाने को जड़ से जब शत्रु स्वयं का और बड़ा हो, संघर्ष का फिर दांव खेलो॥
#अनूप सिंह
परिचय : अनूप सिंह की जन्मतिथि-१८ अगस्त १९९५ हैl आप वर्तमान में दिल्ली स्थित मिहिरावली में बसे हुए हैंl कला विषय लेकर स्नातक में तृतीय वर्ष में अध्ययनरत श्री सिंह को लिखने का काफी शौक हैl आपकी दृष्टि में लेखन का उद्देश्य-राष्ट्रीय चेतना बढ़ाना हैl