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सवालों के जंगल में खो गई है ज़िन्दगी।
उम्मीद के सैलाब में बह गई है ज़िन्दगी॥
बेबस है हर कोई,मंज़िल न मालूम।
मुसाफिर बन के,रह गई है ज़िन्दगी॥
हर सुबह लेती है,जन्म एक नई ख्वाहिश।
न जाने कैसे-कैसे खवाब,सजाती है ज़िन्दगी॥
कभी खुशनुमा कभी,गमगीन आई मंज़िलें।
सुकून के इंतज़ार में,कट रही है ज़िन्दगी॥
सुख-चैन के सेहरा में,खो गया वजूद कहीं।
खुद अपनी ही तलाश में,कट रही है ज़िन्दगी॥
दोस्त तो ईश्वर है,और दोस्त के लिए वक़्त नहीं।
रिश्तों के ताने-बाने में,उलझ कर रह गई है ज़िन्दगी॥
#एम.डी.यस.रामालक्ष्मी
परिचय:एम.डी.यस.रामालक्ष्मी की जन्मतिथि-२३-९-१९७९ तथा जन्म स्थान-विशाखापटनम(आँध्रप्रदेश)है। शिक्षा-एम.ए. और एम.फिल.(दोनों हिन्दी),डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन और डिप्लोमा इन कम्प्यूटर्स है। आपका वर्तमान निवास क़तार में और स्थाई निवास-रेडक्रॉस स्ट्रीट गाँधी नगर (काकीनाडा,आंध्राप्रदेश)में है। आपकी लेखन विधा-कविता,मुक्तक है। सोशल मीडिया के विभिन समूह सहित समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। आपको सम्मान के रुप में ‘मुक्तक भूषण’ मिला है। लेखन का उदेश्य-आत्म संतृप्ति है।
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