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राम का वनवास,
सीता का हरण
आज रावण कर रहा है,
निडर सड़कों पर भ्रमण।
बस चुकी है कुछ घरों में,
लछमिनी की संपदा
अवगुणों के संग सोती,
पक्ष की हर प्रतिपदा।
सूर्य-चंदा की तरह अब,
इस धरा पर है ग्रहण॥
शब्द की बंदूक में है,
कारतूसों की कमी
कथ्य की अमराइयों में,
है न भावों की नमी।
इस समय के श्लोक में अब,
है न लय का संचरण॥
कृष्ण की रक्षा से वंचित,
हरीतिमा की द्रौपदी
जहाँ देखो वहीं पर है,
कालिमा की चौपदी।
पढ़ रहा है दर्द प्रतिदिन,
साँस का अंतिम चरण॥
#शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
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