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‘भूख’ अपने-आप में एक स्वाभाविक बीमारी है,जिसकी अतृप्ति का नाम ‘तड़प’ है। इस तड़प को बिना रोक-टोक के ‘बेसहारा’ के यहाँ आश्रय मिलता है और अगर बेसहारा ‘औरत’ हो तो सोने पर सुहागा अर्थात् सदा-सर्वदा के लिए रहने का अधिकार मिल जाता है। एक बेसहारा औरत का जीवन बेहद जोखिम पूर्ण है और इज्जत को बचाए रख पाना बहुत बड़ी चुनौती है।
जीवन के लिए कुछ अनिवार्य आवश्यकताएँ होती हैं,जिनमें भूख का अहम स्थान है। गरीबी-अमीरी की परिस्थिति से परे इसका हमला हर जीव पर होता ही रहता है। पेट में उठने वाली जठराग्नि इस हद तक कमजोर कर देती है कि,कोई भी जीव मान-अपमान या हानि-लाभ को भूलकर सिर्फ और सिर्फ वर्तमान में क्षुधा पूर्ति को लक्ष्य बना लेता है। भारतीय इतिहास के मध्यकाल में सूखे का वर्णन करते हुए इतिहासकार लिखता है कि-‘भूख से व्याकुल लोग अपने ही अंगूठे को अपने दाँतों से कुतरकर भूख मिटाने का असफल प्रयास करते थे।’
भूख से तड़पती हुई बेसहारा औरत बद से बदतर जिन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाती है। पतनोन्मुख समाज में कदम दर कदम पर उसको मुफ़्त का माल समझकर भूख मिटाने के बदले भोगने वालों की बड़ी संख्या होती है। वह भी एक मशीन की भाँति स्वयं के पुतले को आगे बढ़ा देती है एक प्लेट भात के बदले। खुद को अर्पित न करे तो क्या करे ! भेड़िए नोंच-नोंचकर खा जाएँगे और एक मुट्ठी भात भी नहीं देंगे।
इसके बाद शुरू होती है अन्तहीन कहानी…। प्रकृति के विधान के अनुसार शारीरिक शोषण के उपरान्त अनचाहा अनासक्त गर्भ का बोझ उसके हिस्से में आ जाता है। गरीबी में आटा गीला होना बेहद दुखदाई होता है,और यहां तो खुद के लाले के साथ ही एक और लाल आ जाता है। किसी गटर,किसी नाले के किनारे एक और भूख से तड़पते बेसहारा बच्चे का जन्म होता है। बहुतों को एड्स हो चुका होता है तो कुछ आमन्त्रण देते नजर आते हैं। जिन्दगी और मौत की आँख मिचौनी में एड्स से वह बच्चा बच भी जाए तो कब तक ! जन्म के साथ पैदा हुई आतताई भूख तो पीछा छोड़ेगी नहीं।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी असामाजिकता की ओर उन्मुख यह कहानी सिर्फ नाम या रूप बदलकर चलती रहेगी। न भूख भिटेगी और न भूख की तड़प। सामाजिक अवमूल्यन के साथ बेसहारा औरतों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ेगी ही। इतिहास स्वयं को बार-बार दुहराएगा ।
अपराध,अत्याचार,यातना और यन्त्रणा के बीज फँसी भूख से तड़पती एक बेसहारा औरत पैदा होतीे हुई,बामुश्किल जीती हुई और मरती हुई कदम-कदम पर दिखेगी। तब तक दिखेंगी,जब तक हम उनमें एक माता,बहन,बेटी या धर्मपत्नी को नहीं देखेंगे,इसलिए उनको नारीशक्ति और सृष्टि का मूलभूत अवयव समझने की दिशा में मुहिम का आगाज़ करना होगा।
#अवधेश कुमार ‘अवध’
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Very relevant in day today context. A touching and alerting writeup.
Nice chacha ji