एक दौर था,जब साहित्य प्रकाशन के लिए रचनाकार प्रकाशकों के दर पर अपने सृजन के साथ जाते थे या फिर प्रकाशक प्रतिभाओं को ढूँढने के लिए हिन्दुस्तान की सड़कें नापते थे,परंतु विगत एक दशक से भाषा की उन्नति और प्रतिभा की खोज का सरलीकरण `सोशल मीडिया` के माध्यम से हुआ हैl
तकनीकी विकास के प्रत्येक दौर में मीडिया का नाता सत्ता के साथ-साथ आम जनमानस से गहरा रहा है। भारत में अंग्रेजों के जमाने में प्रिंट मीडिया यानी प्रेस की भूमिका का वर्णन हो या फिर अंग्रेजों के बाद दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए सरकारी योजनाओं व नीतियों के प्रचार-प्रसार की बात हो,या फिर साहित्य के प्रचार और भाषा के उन्नयन में मीडिया की भूमिका हो, मीडिया हमेशा से ही जनता के बीच विचार क्रांति को स्थापित करने में अहम योगदान देती रही है।प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक के बाद अब ऑनलाइन मीडिया ने समाज में अपनी जगह मजबूत करनी शुरू कर दी है। इसे भारत में सोशल मीडिया के प्रसार के युग के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही सरकार के स्तर पर भी ऑनलाइन मीडिया खासतौर से सोशल मीडिया व नेटवर्किंग साइटों को प्रोत्साहित करने की नीति दिख रही है। इस अध्ययन में सोशल मीडिया और सरकार के रिश्ते और उसके व्यापक समाज पर प्रभाव का मूल्यांकन किया गया है।
कल के गर्भ में मीडिया की भूमिका-
संचार क्रांति की उन्नति का तथ्य सदा से ही विकास की अवधारणा से जुड़ा है। जर्मनी के सुनार जॉन गुटनबर्ग ने १४४५ ई. के आस-पास छपाई की तकनीक विकसित की। इससे अखबारों,पर्चों और इश्तेहार का प्रकाशन सरल और प्रचलन में हो गया। उस समय तात्कालिक राजनीति पर वर्चस्व रखने वाली शक्तियों ने इसे इस्तेमाल और परिष्कृत किया। धार्मिक प्रचार में लगे संगठनों ने अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिए छापेखाने का इस्तेमाल किया, लेकिन अखबार,पर्चे या किताबें समाज के हर वर्ग के इस्तेमाल की चीज नहीं थींl पर्चे और अखबार में छपी सूचनाओं को पढ़ने के लिए शिक्षित होना जरूरी था। अखबारों को खरीद पाने के लिए उसके दाम का भुगतान कर पाने में हर व्यक्ति का सक्षम होना जरूरी थाl यानि इन माध्यमों के जरिए समाज का एक छोटा-सा हिस्सा आपस में संवाद करता था और उनकी बातें बाकी लोगों तक धीरे-धीरे छनकर पहुंचती थीl
मीडिया का इस्तेमाल कुलीनों ने अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए बखूबी कियाl और इसे तब तक यथासंभव कायम रखा,जब तक की उच्च वर्ग के लिए दूसरी संचार तकनीक नहीं आ गई। प्रिंट के बाद टेलीफोन(१८८७) का अविष्कार हुआ और जल्द ही यह उच्च शहरी तबके,सरकारी कामकाज और व्यापारिक कामों में इस्तेमाल होना शुरू हो गया। रेडियो(१९०७) का इस्तेमाल अमेरिका की जलसेना (नेवी) ने शुरू किया,और फिर यह निजी रेडियो क्लबों से होते हुए आम लोगों तक संचार का माध्यम बना। टेलीविजन(१९२७) को भी कई सालों तक सेट और लाइसेंस या शुल्क के भुगतान ने इसे खास वर्ग तक सीमित किए रहा। संचारविद हरबर्ट आई.शीलर ने अपनी पुस्तक `संचार माध्यम और सांस्कृतिक वर्चस्व` में उपग्रह संचार की उत्पति के बारे में कहा है-`उपग्रह संचार का मामला बड़ा शिक्षाप्रद हैl सबसे आक्रामक अमरीकी पूंजीवाद के एक छोटे समूह के मन में यह खयाल आयाl उन्हीं लोगों ने इस पर शोध कराया और उपग्रह का निर्माण हुएl उपग्रहों को दुनिया के पैमाने पर संचार तंत्र के रूप में खड़ा किया गया,जिससे अमरीकी औजार निर्माताओं, इलेक्ट्रॉनिक निगमों,सैन्य संस्थानों तथा सामान्यतया विज्ञापन और व्यापारिक समूहों को लाभ हुआ।`
वर्तमान में सोशल मीडिया का प्रभाव-
भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव भी अमरीका की तरह ही स्थापित हो रहा है,वर्ष २०१४ के आम चुनावों के बाद आए परिणामों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर स्थापित कर इस बात पर मोहर भी लगा दी कि,हिन्दुस्तान में सोशल मीडिया का दौर शुरू हो चुका हैl
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल नेटवर्किंग साइट `फेसबुक` के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग से दिल्ली में सार्वजनिक मुलाकात की और अपने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के बारे में चर्चा कीl संचार एवं सूचना
प्रौदयोगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को फेसबुक के साथ मिलकर फेसबुक की परियोजनाओं पर गंभीरता से काम करने के निर्देश दिएl
नई सरकार बनने के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि,नरेन्द्र मोदी ने सभी मंत्रियों को सोशल मीडिया के जरिए लोगों से सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए कहा हैl मंत्रालयों को सोशल मीडिया पर खाता खोलने और उस पर लोगों से जुड़ने तथा उनके सवालों के जवाब देने को कहा गयाl संसद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने बताया कि,मंत्रालय के अंतर्गत ‘न्यू मीडिया विंग’ खोला गया है,और सभी मंत्रालयों-विभागों को सोशल मीडिया पर सक्रियता के लिए इसका इस्तेमाल करने को कहा गया हैl ११ जुलाई २०१४ को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मीडिया केन्द्र में सभी मंत्रालयों के अधिकारियों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर उन्मुखीकरण कार्यशाला रखी गईl
यह घटनाएं भारत में मीडिया के स्तर पर बदलती नीति की तरफ इशारा करती हैंl नीतियों में यह बदलाव केवल सरकार के स्तर पर लिया गया फैसला नहीं है,बल्कि एक नए माध्यम के तौर पर सोशल मीडिया को स्थापित करने का राजनीतिक फैसला हैl राजनीतिक तौर पर वर्चस्व कायम रखना और समय के अनुसार माध्यम का चुनाव एवं उसका विस्तार एक-दूसरे से जुड़े होते हैंl सोशल मीडिया का प्रसार और भारत में इंटरनेट की पहुंच-
क्रम |
संख्या(लगभग) |
प्रतिशत |
|
१. |
भारत की जनसंख्या |
१,२७०,०००,००० |
१०० |
२. |
कुल इंटरनेट उपभोक्ता |
२४३,१९९,००० |
१९ |
३. |
सोशल मीडिया के सक्रिय प्रयोगकर्ता |
१०६,०००,००० |
८ |
४. |
सक्रिय मोबाइल उपभोक्ता |
८८६,३००,००० |
७० |
५. |
सक्रिय मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता |
१८५,०००,००० |
१५ |
६. |
सक्रिय मोबाइल सोशल मीडिया प्रयोगकर्ता |
९२,०००,००० |
७ |
भारत के गांवों में अंतरजाल की पहुंच
क्रम |
संख्या(लगभग) |
प्रतिशत |
|
१. |
भारत की जनसंख्या |
१,२७०,०००,००० |
१०० |
२. |
कुल ग्रामीण जनसंख्या |
८८९,०००,००० |
६९ |
३. |
कुल ग्रामीण इंटरनेट उपभोक्ता |
६८,०००,००० |
५.४ |
४. |
सक्रिय ग्रामीण इंटरनेट उपभोक्ता |
४६,०००,००० |
3.6 |
५. |
सक्रिय ग्रामीण मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता |
२१,०००,००० |
१.६ |
स्रोत-क्यूब रिपोर्ट ‘इन्टरनेट इन रूरल इण्डिया’ बाय द इन्टरनेट एन्ड मोबाईल ऑफ़ इण्डिया (आईएएमएआई)एन्ड आईएमआरबी,जुलाई २०१३
वर्तमान में जब भारत में लगभग हर अच्छे-बुरे का आंकलन उसके सोशल मीडिया के रिपोर्ट कार्ड के आलोक में देखकर तय किया जा रहा है,संस्था,संस्थान,व्यक्ति,सरकार,कंपनी,साहित्यकर्मी से समाजकर्मी तक और नेता से अभिनेता तक को सोशल मीडिया में उसके वजन,प्रभाव और लोकप्रियता की कसौटी पर तौला जा रहा है,तो साहित्य और हिन्दी का प्रचार भी सोशल मीडिया की कसौटी पर कसकर करना होगाl
साहित्य सृजन के लिए वर्तमान में जब सोशल मीडिया उपयुक्त माध्यम है,तब भी रचनाकारों का पुस्तकों की छपाई के प्रति मुड़ना कुछ संशय में लाकर खड़ा कर देता हैंl पहले प्रकाशित पुस्तकें और अख़बारों में प्रकाशित रचनाएँ पाठक खोजती थी और जोड़ती थी, जबकि आज के दौर में यही काम-फेसबुक,व्हाट्सअप और ट्विटर के साथ ब्लॉग और निजी अंतरजाल कर रहे हैंl
और होना भी यही चाहिए,क्योंकि जब हमारे पास सस्ते और पर्यावरण के लाभ के साथ विकल्प मौजूद हैं,तो हम क्यों कर पुराने तरीकों से पर्यावरण को हानि पहुँचाकर भी महँगे माध्यम की ओर जा रहे हैंl
पर्यावरण की दृष्टि से देखा जाए,तो कागज का उपयोग,कई वृक्षों की कुर्बानी माँगता है, और यदि हम केवल समाचार पत्रों के डिजिटल संस्करण का उपयोग करना शुरू कर दें तो कई पेड़ों की कटाई को रोककर पर्यावरण का नुकसान बचा सकते हैंl डिजिटल संस्करण का शुल्क भी देकर समाचार पत्रों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती हैl
जानें कितना नुकसान होता है अख़बार के कागज के बनने पर…
#१२ पेड़ों की लकड़ी से १ टन अख़बार के कागज का निर्माण होता हैl
#एक अख़बार में लगभग २० पृष्ठ यानी लगभग ३५ ग्राम कागज का इस्तेमाल होता हैl
#१ टन अख़बार के कागज पर अखबार की लगभग २७५०० प्रति छपती हैl
#एक पेड़ की कटाई से अख़बार की लगभग २२०० प्रतियाँ प्रकाशित होती हैंl
#हिन्दुस्तान में लगभग २० करोड़ अख़बार की प्रतियाँ प्रतिदिन छपती हैंl
#मतलब लगभग ७४०० टन कागज का इस्तेमाल प्रतिदिन केवल अख़बार छापने भर में होता हैl
#इन सब पर कुल ८८००० पेड़ों की प्रतिदिन कटाई केवल अख़बार छापने के लिए ही होती हैl
तो इसीलिए आवश्यकता है डिजिटल मीडिया की…
भारत भर के आँकड़ों का अवलोकन किया जाए,तो हम केवल अख़बार के कारण लगभग ८०से ९० हज़ार वृक्षों को प्रतिदिन कुर्बान कर देते हैं,जबकि हम केवल आदत बदलने भर से पर्यावरण का नुकसान होने से बचा सकते हैंl साथ की अख़बार की लागत मूल्य भी ज़्यादा है,जिसे डिजिटल मीडिया से आसानी से कम खर्च में अधिक उपयोगी बनाया जा सकता हैl
यही हाल पुस्तकों का भी है,जबकि यदि हम वेब पर अपनी निजी वेबसाइट भी ब्लॉग जैसी या पुस्तक जैसी बनवाएं तो खर्च अमूमन ५-६ हज़ार रुपए ही आएगाl इस पर आप अपनी बहुत सारी किताबों के ई-संस्करण भी प्रकाशित कर सकते हैं, और पुस्तकों के पाठक के साथ-साथ लाखों विश्वस्तरीय पाठकों की पहुँच तक जाया जा सकता हैl
इन्ही संदर्भों में यदि ब्लॉग को नापा जाए,तो वह और बेहतर विकल्प हैl फिर सोशल नेटवर्किंग साइट तो है ही रचना के बेहतर प्रचार की,क्योंकि आप एक बात और देखिए क्या विगत दो दशकों में कोई किताब याद है,जिसकी १० लाख प्रतियाँ बिकी हो ? परंतु ये ज़रूर बता सकते हैं कि,कई सोशल साइट या निजी वेबसाइट हैं,जिनके दर्शक १ करोड़ तक पहुँचे हैंl
यह बात तय है कि,लाभ का सौदा है सोशल मीडिया या इंटरनेट,तथा इस माध्यम से पाठकों तक पहुँचना और किफायती भी हैl सबसे अच्छी बात-सोशल मीडिया में आपकी यदि रचना चोरी होती है,तब आप न्यायिक सहायता भी ले सकते हैं,जबकि हम किताबों के प्रकाशन में धन और समय दोनों को खर्च करने के बाद सीमित दायरे में ही बँधे रहते हैंl यानी सोशल मीडिया का विकल्प पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभप्रद हैl
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।
बहुत अच्छा लेख है प्रेरणादायी और नवीनतम जानकारियों से युक्त ।