सफरनामा

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swayambhu 

भाग-३………………
फिल्म उद्योग में सभी पेशेवर हैं,काम के प्रति समर्पित,समय के पाबन्द। अलग-अलग प्रदेश,अलग-अलग भाषा के लोग कितनी अच्छी समझ के साथ मिलकर काम करते हैं,मुंबई फिल्म 
उद्योग इसकी मिसाल है। इस बीच फिल्म्स राइटर्स एसोसिएशन की सदस्यता भी मुझे मिल चुकी थी। करीब दो सप्ताह के बाद एक रोज मैंने हरिवंशराय बच्चन साहब को दिल्ली फोन लगाया। मालूम हुआ कि,वो इलाज के लिए मुंबई आए हुए हैं। उसी रोज उनसे मिलने के लिए मैं जुहू स्थित उनके बंगले ‘प्रतीक्षा’ में पहुंच गया। शाम ७ बजे का वक्त रहा होगा। थोड़ी प्रतीक्षा के बाद सुरक्षा करने वालों ने मेरा संदेश अंदर पहुंचाया। संकेत मिलने पर एक सुरक्षाकर्मी मुझे अंदर ले गया। बच्चन साहब लॉन में बैठे थे। मैंने उनके पांव छुए,उन्होंने सिर पर हाथ रखा,मैं धन्य हो गया। वे अस्वस्थ दिखाई दे रहे थे,फिर भी उन्होंने मेरे साथ कई विषयों पर बातचीत की। उस महान व्यक्तित्व की सरलता और विनम्रता के बारे में लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मिले ऐसे मानों-वर्षों की जान-पहचान हो। वो पल मेरे लिए तो ऐसे थे जिनमें कोई पूरी जिंदगी जी लेना चाहे। 

उन्होंने इस बात के लिए खुशी जाहिर की कि,बी.आर.चोपड़ा ने मुझे मुंबई बुलाया और मैं उनके स्टूडियो में कलाकारों को हिंदी का प्रशिक्षण दे रहा हूंl वे इस बात के लिए परेशान थे कि मुझे इतनी जल्दबाजी क्यों है। उनकी राय थी कि,अभी मुझे आगे की पढ़ाई के बारे में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि-`अभी एमएससी कीजिए,रिसर्च कीजिए,प्रोफेसर बनिए। अपनी पहचान बनाइए,तब आपका साहित्य समाज के लिए भी उपयोगी होगा। आपके लेखन को मान्यता भी मिलेगी। केवल साहित्यकार बनकर रोटी कमाना बहुत मुश्किल है। ईश्वर ने आपको यह क्षमता दी है,इसे अनुभव और अभ्यास से विकसित कीजिए।`
मैं समझ नहीं पा रहा था कि,उन्हें क्या जवाब दूं। मैं तो मुग्ध भाव से सिर्फ उन्हें देख रहा था। और भी न जाने किन-किन बातों की चर्चा उन्होंने की। वहां से निकलने पर तो जैसे मैं सब-कुछ भूल गया। बस उनके व्यक्तित्व की आभा और स्नेह भरे स्पर्श को ही मैं संजोकर ले जाना चाहता था। उन्होंने
दूसरे दिन भी शाम के वक्त आने के लिए कहा,लेकिन दूसरे दिन मेरे वहां पहुंचने के पहले ही वे अस्पताल जा चुके थे।सुरक्षाकर्मियों ने बताया-उसी रोज दोपहर में उनकी तबियत अचानक बिगड़ गई थी।
मुंबई की उस चकाचौंध भरी दुनिया से निकलकर वापस पढ़ाई पर ध्यान लगाने का निर्णय आसान नहीं था। फिर भी बच्चन साहब के निर्देश को मैंने अपना संकल्प बनाया।
बी.आर.स्टूडियो में करीब दो हफ्ते में ‘गीता सन्देश’ वाले अंक के अभ्यास का काम पूरा हो चुका था। मैंने चोपड़ा साहब से घर जाने की इजाजत मांगी,हालांकि वे चाहते थे कि ‘महाभारत’ पूरा होने तक मैं उनके कहानी विभाग को देखूं। वे भी मुझे बताना चाहते थे कि,फिल्म 
उद्योग के अंदर अगर लेखन क्षेत्र में कुछ करना है,तो स्थाई रूप से मुंबई में रहना होगा।
मुंबई प्रवास के दौरान राधिका फिल्म्स के निर्माता-निर्देशक मोहनजी प्रसाद से भी मुलाकात हुई थी। मेरे कुछ गीतों पर उनके साथ संगीत निर्देशक राम-लक्ष्मण ने धुन भी तैयार की थी। वे भी चाहते थे कि,सिचुएशन पर मैं गाने लिखूं,लेकिन यह तभी मुमकिन था,जब मैं मुंबई में स्थाई तौर पर उपलब्ध रहता। घर पर रह के फ़ोन और खतों के जरिए यह काम संभव नहीं था। उस वक्त आज के जैसे साधन नहीं थे।
यह तय हो गया था कि,मुझे अभी मुंबई को अलविदा कहना है। आगे का रास्ता स्पष्ट था-एमएससी में प्रवेश और आगे की पढ़ाई।
वापस घर आने पर बच्चन साहब का फिर एक पत्र मिलाl जो कुछ उन्होंने मुंबई में कहा था,वही बात फिर से पत्र में भी दुहराई। शायद उन्हें इस बात का अंदेशा था कि,मुंबई के आकर्षण से निकल पाना मेरे लिए कठिन होगा। मैंने भी तुरंत अपने इरादे से उन्हें अवगत करा दिया। बस अब एमएससी का लक्ष्य सामने था। हालांकि,पठन-पाठन की तमाम व्यस्तताओं के बीच भी मैंने लिखना जारी रखा। हां, समय के साथ लेखन की विधा में फर्क आता गया। मुझे याद है एमएससी पूरी होते-होते मैंने पांच कहानियां पूरी कर ली थी। साथ ही लेखकों-पाठकों के पत्रों का बाकायदा जवाब देना भी मैंने जारी रखा। उस वक्त मुझे ऐसा लगता था कि,कविता, गीत या ग़ज़ल से तो व्यक्ति शब्दों को बांधने की कला सीखता है,असल साहित्य तो कहानियों में नजर आता है। अपनी ही किसी कहानी को पढ़कर मैं खुद मुग्ध हो जाता था। मेरी एक प्रिय कहानी ‘एक थी निरोत्तमा’ जो मेरे ही सम्पादन में प्रकाशित पत्रिका ‘स्रोतस्विनी’ में छपी थी,कई लोगों ने उसके लिए लिखा कि,उस कहानी की हर पंक्ति एक कविता है।
बी.आर.अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय से एमएससी (भौतिक शास्त्र में इलेक्ट्रॉनिक्स की विशिष्टता के साथ) में मुझे महाविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। ८५-८७ के सत्र में परिणाम आते-आते आधा ८८ बीत चुका था…l
(क्रमश…इंतज़ार कीजिए चौथे भाग का)

           #डॉ. स्वयंभू शलभ

परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।