कहीं पहने हुए,
इन्सान की खाल ।
और कहीं..
ओड़ इन्सानियत का नकाब
दिख जाते हैं, सब तरफ भेड़िये ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
कभी अजनबी,
तो कभी बन रिश्तेदार।
कभी सीधे,
तो कभी करें छिप कर प्रहार ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
मौका मिलते ही करें वार,
कहीं नोचें मांस,
दिखा के प्यार ।
कहीं मारते हैं तिल-तिल करके
कहीं…
एक बार में ही करें काम-तमाम ।
भेड़िये… सिर्फ जंगलों में ही नहीं होते ।।
अंजु गुप्ता
परिचय
जन्मतिथी : 7 अक्टूबर
निवास : हिसार, हरियाणा
विधा : तुकांत , अतुकांत , हाइकु, वर्ण पिरामिड और लघुकथाएँ
शिक्षा : बी.कॉम, PGDMM , PGDCA , MBA , M A (English ), B.Ed
साँझा कविता संग्रह : सत्यम प्रभात, अनकहे जज्बात, मुसाफिर, स्त्री का आकाश, प्यारी बेटियाँ इत्यादि
सम्मान : युग सुरभि सम्मान, काव्य सागर सम्मान, हिंदी सेवी सम्मान, “जय विजय रचनाकार सम्मान”, “काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान”, सिद्धि श्रेष्ट सम्मान”, पॉजिटिव वीमेन अवार्ड ” इत्यादि !