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रामभरोसे और नयनसुख शहर के दो बहुत ही प्रतिष्ठित
परिवारों के मुखिया थे। दोनों परिवारों के बीच दांत-काटी रोटी जैसे मधुर संबंध वर्षों से थे। समय चक्र अपने दायित्व का भली-भांति निर्वाह कर रहा था। कुछ समयान्तर के बाद रामभरोसे की पुत्री ने स्नातक और नयन सुख के पुत्र ने एम.बी.ए. की योग्यता प्राप्त कर ली। दोनों परिवारों की आपसी रजामंदी से बच्चों के बीच वैवाहिक रिश्ते की बात तय हो गई।
फलतः नियत तिथि पर बारात आगमन, प्रीतिभोज व मंच कार्यक्रम के बाद मध्य रात्रि में लग्नफेरों की घडी़ भी आ गई। और जीवन के सबसे खूबसूरत लम्हातों का वह सफर भी शुरु हो गया,जो एक लड़की यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही सोचने लगती है। छह फेरे पूर्ण हो गए,अब सातवें फेरे की बारी थी। अकस्मात दुल्हन रामप्यारी ने सातवां फेरा लेने से इंकार कर दिया। उपस्थित अतिथि,मेजबानों के साथ-साथ वर-वधू के माता-पिता सभी के चेहरों पर शंका- कुशंका के भाव पैदा हो गए।
पंडित सुखीराम ने परिस्थिति को भांपते हुए कहा- ‘बेटी,सातवां फेरा लेने के बाद ही धर्मानुसार तुम्हारे विवाह को मान्यता प्राप्त होगी।’
लड़की की मां कामना ने कहा-‘बेटी,यह स्थिति अधिकतर लालची वर पक्ष के लोग उत्पन्न करते हैं,किन्तु ये तो सदाचारी और भले मानुष हैं,तब तुम्हारा यह निर्णय हम सबकी समझ से परे है, क्यों ?’
रामप्यारी ने जवाब दिया-‘मां, मुझे सातवें फेरे से तनिक भी परहेज नहीं है,बल्कि मैं तो इसके बाद आठवां फेरा भी लेना चाहती हूँ,जहां वर पक्ष मुझे यह सहमति दे कि भविष्य में मेरे गर्भवती होने पर उनके द्वारा किसी भी स्थिति में मुझे लिंग परीक्षण के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।’
कुछ ही क्षणों के बाद सातवां फेरा लेने के बाद आठवां फेरा भी लिया जा रहा था, सभी मेजबानों और आमंत्रितों के चेहरे पर उपस्थित मंद-मंद मुस्कान नव परिवर्तन की साक्षी बन चुकी थी।
#कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।
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