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उतरेंगे केवल वही,भवसागर के पार।
जीवन भर थामे रहे,जो सत की पतवार॥
अंतस में होते सदा,वे जन ही आसीन।
मानव सेवा में रहे,जो श्रृद्धा से लीन॥
बदल सका है कौन कब,नियत समय की चाल।
विधिना ने जो लिख दिया,होता है हर हाल॥
लोग वही पाते सदा,जग में अलग मुकाम।
ओरों के दुख दर्द में,आते हैं जो काम॥
सेवा संयम साधना,प्रेम और विश्वास।
कुछ लोगों के पास ही,होते ये गुण ख़ास॥
राम कहो मौला कहो,वाहे गुरु या ईश।
सबका मतलब एक है,जगतपिता जगदीश॥
मानवता के मूल से, गायब है परमार्थ।
परिभाषाएं धर्म की,नई गढ़ रहा स्वार्थ॥
नित बढ़ता ही जा रहा,भोगवाद का रोग।
भौतिकता की दौड़ में,दौड़ रहे सब लोग॥
‘बंसल’ करता आपसे,विनती बारम्बार।
द्वेष छोड़कर कीजिए,मानवता से प्यार॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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