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कविता कवि की कल्पना,
किए समाहित अर्थ।
निराधार कवि-कथन का,
सृजन जानिए व्यर्थ॥
शब्द अनावश्यक न हो,
शब्द-शब्द में अर्थ।
करे समाहित प्रौढ़ कवि,
देखे हो न अनर्थ॥
रहें सदय कविजनों पर,
पल-पल रमा-रमेश।
सत्ता निष्ठा शारदा,
प्रति हो ‘सलिल’ हमेश।
अपनेपन का शत्रु है,
अहं दीजिए त्याग।
नष्ट करे सुख-चैन सब,
चिंता-शंका आग॥
वेद कहे पढ़ वेदना,
ओरों की तत्काल।
हाय निबल की अति प्रबल,
नष्ट करे बन काल॥
#संजीव वर्मा सलिल
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