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त्याग तपस्या में तुम गुरुवर
चतुर्थ काल पर भारी हो,
कैसे कह दूँ विद्यासिंधु तुम
पंचमयुग के अवतारी हो।
जिनवाणी भी कहती है
सहस्त्र वर्ष हो चौथा काल,
एक दिन हो पंचम काल
दोनों युग्म समानधारी हो।
कैसे कह दूं विद्यासिंधु तुम,
पँचमयुग के अवतारी हो।
इतने उपवासों की तृषा को सहना
कषाय काय को घिसते रहना,
आदिनाथ सम उत्कृष्ट तपधारी हो।
कैसे कह दूं विद्यासिंधु तुम,
पँचमयुग के अवतारी हो।
यूँ घंटों-घंटों ध्यान करना
मध्यम काठी दुबले तन का,
होने पर भी बाहुबली
सम बलधारी हो।
कैसे कह दूं विद्यासिन्धु तुम,
पंचमयुग के अवतारी हो।
घोर उपद्रव तुम पर आते
रोग कमठ बन तुम्हें सताते,
पार्श्वनाथ बन तुम उन्हें हराते
अतिशीघ्र शिवपुर के अधिकारी हो।
कैसे कह दूं विद्या सिंधु तुम,
पँचमयुग के अवतारी हो॥
#शुभांशु जैन
परिचय : शुभांशु जैन मध्यप्रदेश से हैं। लेखन में उपनाम-शुभ लगाते हैं। आपकी जन्मतिथि-२८ मई १९९५ तथा जन्म स्थान-शहपुरा भिटौनी(जिला जबलपुर) है। निवास राज्य-मध्यप्रदेश के शहर-जबलपुर में ही है। बी.ई. सहित पीजीडीसीए की शिक्षा ली है,तो पत्रकारिता की पढ़ाई जारी है। आपका कार्यक्षेत्र-मंच संचालक,लेखक,कवि और वक्ता के रुप में है। सम्मान के रुप में युवा मंत्रालय द्वारा नेहरू गांधी भाषण स्पर्धा में प्रथम पुरस्कार(जिला स्तरीय)प्राप्त किया है। आपके लेखन का उद्देश्य-परम् पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्या सागर जी की धर्म प्रभावना के साथ साथ गुम होते हुए संस्कारों को युवा पीढ़ी में पुनः स्थापित करना है। साथ ही अपनी मातृभाषा,संस्कृति,शिक्षा,देश आदि के प्रति अपने कर्तव्य निभाने के लिए सबको प्रेरित करना भी है।
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