सबकी माँ ऐसी होती है,
देख परेशान बच्चों को खुद भी परेशान रहती है
न खाएएं खाना हम,तो खुद भी अनशन कर देती हैl
हमें खिलाने की खातिर,हमी से पंगे लेती है,
डांटे हमको जोरों से,फिर खुद रो देती है…l
क्या सबकी माँ ऐसी होती है ?
जब तक हम घर न आ जाएं,बेचैन-सी रहती है,
हर आहट से दरवाजे पर पहरेदारी करती है…
संग हमारे हर साल उसकी भी परीक्षा होती है,
हमें जगाने की खातिर रात-रात नहीं सोती है…l
क्या सबकी माँ ऐसी होती है ?
सबको खूब खिलाती खाना,
खुद की परवाह नहीं करती है…
`खुद को वक़्त आज दूँगी` रोज सबेरे कहती है,
फिर सबके लिए दौड़-दौड़कर थक जाती है
`मेरा ध्यान कोई नहीं रखता` सबको कहती रहती है,
क्या सबकी माँ ऐसी होती है ?
बड़े-बड़े आँसू टपकाए,नाटका देख के रोती है,
दूजों की तारीफें करती,मुझसे खुश न होती है…
मेरे लिए दुआ मांगती हरदम,दिनभर पूजा करती है,
चाहे बच्चा कैसा भी हो,सुंदर उसको कहती हैl
क्या सबकी माँ ऐसी होती है ?
#सुषमा दुबे
परिचय : साहित्यकार ,संपादक और समाजसेवी के तौर पर सुषमा दुबे नाम अपरिचित नहीं है। 1970 में जन्म के बाद आपने बैचलर ऑफ साइंस,बैचलर ऑफ जर्नलिज्म और डिप्लोमा इन एक्यूप्रेशर किया है। आपकी संप्रति आल इण्डिया रेडियो, इंदौर में आकस्मिक उद्घोषक,कई मासिक और त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन रही है। यदि उपलब्धियां देखें तो,राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 600 से अधिक आलेखों, कहानियों,लघुकथाओं,कविताओं, व्यंग्य रचनाओं एवं सम-सामयिक विषयों पर रचनाओं का प्रकाशन है। राज्य संसाधन केन्द्र(इंदौर) से नवसाक्षरों के लिए बतौर लेखक 15 से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन, राज्य संसाधन केन्द्र में बतौर संपादक/ सह-संपादक 35 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। पुनर्लेखन एवं सम्पादन में आपको काफी अनुभव है। इंदौर में बतौर फीचर एडिटर महिला,स्वास्थ्य,सामाजिक विषयों, बाल पत्रिकाओं,सम-सामयिक विषयों,फिल्म साहित्य पर लेखन एवं सम्पादन से जुड़ी हैं। कई लेखन कार्यशालाओं में शिरकत और माध्यमिक विद्यालय में बतौर प्राचार्य 12 वर्षों का अनुभव है। आपको गहमर वेलफेयर सोसायटी (गाजीपुर) द्वारा वूमन ऑफ द इयर सम्मान एवं सोना देवी गौरव सम्मान आदि भी मिला है।
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