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नज़र भर न देखो,
नज़र को नज़र से
नज़र को नज़र की,
नज़र लग न जाए।
शहर में क़हर है,
क़हर में शहर है
ठहर जा शहर में,
क़हर हो न जाए।
ज़हर ही ज़हर को,
ज़हर-सा है काटे
ज़हर से ज़हर को,
ज़हर हो न जाए।
पहर दो पहर तू,
रुक जा डगर पर
पहर पर पहर का,
पहर हो न जाए॥
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |
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