अफगानी और हिंदी

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अमरीका में रहने वाले अफगानियों की सबसे बड़ी जनसंख्या हमारे फ्रीमोंट शहर में है। जब मैं कहीं आने-जाने के लिए टैक्सी बुलवाता हूं तो कई बार अफगान चालकों से मुलाकात हो जाती है। आज भी ऐसा ही हुआ। मुझे किसी काम से एक सरकारी कार्यालय में जाना पड़ा। कैब में यहां का स्थानीय बॉलीवुड रेडियो चैनल चल रहा था,जिसमें हिन्दी गीत बज रहे थे। ये मेरे लिए नई बात नहीं थी, क्योंकि कई बार सिख चालक भी मिल जाते हैं, इसलिए कैब में हिन्दी गाने बजना आम बात है, लेकिन आज वाला चालक नाम से भारतीय नहीं लग रहा था,इसलिए मुझे कौतूहल हुआ। मैंने अंग्रेज़ी में उससे पूछा कि-`आप हिन्दी गीत सुन रहे हैं,तो क्या आप हिन्दी भी बोलते हैं?`
उसने कहा,-`नहीं,मैं अफगानिस्तान से हूं और वहां हम हिन्दी फिल्में खूब देखते थे। मुझे हिन्दी फिल्में और हिन्दी गीत बहुत पसंद हैं। अफगानिस्तान में लोग हिन्दी फिल्में बहुत पसंद करते हैं और हम फिल्में हिन्दी में ही देखते हैं,डबिंग या सब-टाइटल के साथ नहीं।`
`वाहl बहुत बढ़िया…`,मैं बोला।
`हां,अमिताभ बच्चन हमारे लिए हीरो है,सबसे बड़ा सुपर स्टार। वैसे अब अफगानिस्तान में लोग शाहरुख खान को ज्यादा पसंद करते हैं,लेकिन मेरा हीरो तो अमिताभ ही है। मुझे वही पसंद है।`
वह बहुत उत्साहित था। उसने मेरी बात बीच में ही काट दीl मुझे बुरा नहीं लगा,क्योंकि मैं खुद ही अफगानिस्तान के बारे में उससे और भी बातें सुनना चाहता था। मैं सुनता रहा और छोटे-छोटे सवाल पूछकर उसे और बोलने के लिए प्रोत्साहित करता रहा।
`फिर तो आपने अमिताभ बच्चन की बहुत-सी फिल्में देखी होंगी?`
`हां,मैंने उसकी फिल्में खूब देखी हैं। कई बार तो मैं घर से स्कूल जाने के लिए निकलता था और भागकर हिन्दी फिल्में देखने पहुंच जाता था। एक तरह से मेरा बचपन अमिताभ बच्चन के साथ ही बीता है।`
`क्या हिन्दी भाषा और आपके देश की भाषाओं में बहुत समानता है? क्या फिल्मों की कहानी या संवाद समझने में आपको दिक्कत नहीं होती?`
उसने कहा,-`भाषा तो अलग है,लेकिन फिर भी हम हिन्दी काफी हद तक समझ लेते हैं। हालांकि,मैं हिन्दी में बात नहीं कर सकता,लेकिन समझ जाता हूं। देखिए,हम फारसी बोलते हैं,और मेरे ख्याल से हिन्दी और फारसी में बहुत समानता है। शायद हिन्दी में २० प्रतिशत शब्द फारसी के हैं। मुझे पक्का नहीं मालूम,लेकिन काफी समानता हैl`
उसने आगे बोलना जारी रखा,-`दूसरी बात ये भी है कि,जब अफगानिस्तान में क्रांति हुई,तो बहुत सारे लोग देश छोड़कर हिंदुस्तान या पाकिस्तान चले गए,फिर उनका हिन्दी और ऊर्दू से वास्ता पड़ा। इसलिए उनसे संपर्क के कारण भी कुछ हद तक ये भाषाएं अफगानिस्तान पहुंचीं।`
अब बात फिल्मों और भाषाओं से आगे बढ़कर देश की परिस्थितियों की तरफ मुड़ गई। वह अपने अतीत में खो गया था।
`अफगानिस्तान में ज़िंदगी बहुत अच्छी थी। लेकिन मुजाहिदीन आए और सब बर्बाद हो गया। रोज़ लोग मारे जाने लगे। अफगानिस्तान तबाह हो गया। हमें देश छोड़ना पड़ा।`
`लेकिन क्या अब पिछले कुछ सालों में वहां की हालत में सुधार हुआ है?`
`देखिए,मैं १० साल की उम्र में वहां से निकला था। आज मेरी उम्र ५० साल है। पिछले ४० सालों में अफगानिस्तान युद्ध की आग में जल रहा है। इतने सालों में सिर्फ एक बार मैं वहां जा सका हूं। १९९२ के बाद मैं दोबारा वहां नहीं जा सका। २५ साल हो गए,मैं अपने ही देश में नहीं जा सकता क्योंकि जाने लायक हालात नहीं हैं। ४० सालों की लड़ाई में २ पीढ़ियां बर्बाद हो गईं। ये हमारी लड़ाई नहीं है। रूस की लड़ाई,अमरीका की लड़ाई,फ्रांस और ब्रिटेन की लड़ाई है। इसमें हमें क्या मिला? अफगानिस्तान को क्या मिला? अफगान को क्या मिला? आम अफगानी या तो विदेशी सेनाओं के हाथों मरता है या मुजाहिदीन के हाथों। लोग अपने घरों में बैठे हैं,अचानक कोई बम गिरता है और २५ लोग मर जाते हैं। कल-परसों ही कई जगह धमाके हुए,बहुत-से लोग मारे गए। ये रोज़ की बात है। सरकारें हर मौत के लिए हज़ार डॉलर का मुआवजा दे देती हैं। हमारी ज़िंदगी की कीमत बस इतनी ही है!`
उसने और भी बहुत-कुछ बताया,जो मैं यहां नहीं लिखूंगा,लेकिन वह बताता रहा और मैं सुनता रहा। मैं अफगानिस्तान के बारे में अखबारों,पुस्तकों और अन्य स्रोतों से जानकारी पढ़ता रहता हूं,लेकिन आज पहली बार एक अफगानी से ही मेरी बात हो रही थी और बहुत-कुछ जानने-समझने को मिल रहा था।
अफगानिस्तान के बारे में बातें करते-करते अंततः हम अपनी मंज़िल पर पहुंच गए थे। मैंने शुभकामनाएं देकर उससे विदा ली। हमारी बातें खत्म हो चुकी थीं,लेकिन मेरे विचार नहीं। फ्रीमोंट के सरकारी दफ्तर की लंबी लाइन में खड़ा-खड़ा मैं बहुत-कुछ सोचता रहा। अभी भी मैं बहुत-कुछ सोच रहा हूंl
    (साभार-वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

       #सुमंत विद्वांस

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।