एक नन्हीं कोपल ही तो थी न मैं… सिंचित हो पौध बनी, लताओं-सी लहराई… प्रेम-दुलार मनुहार से, पालन-पोषण कर वृक्ष-सा खड़ा किया मुझे…l
फिर क्यों भूल गए,
सौंपकर मुझे
क्यों काट दिया
मन का एक टुकड़ा…
चाह थी जब वृक्ष-सी,
आसमां को छूने की
समूल विस्थापित कर दिया…
एक मजबूत होते वृक्ष से,
अमरबेल-सी नियति…l
अब हूँ विस्मित-सी मैं,
इस मधुर कोलाहल से…l
गढ़ा है प्रकृति ने मुझे,
कुछ विशेष प्रयोजन से…
झुलसकर कुम्हलाकर भी,
पुनः स्थापित हो गई मैं…
मजबूत जड़ों-शाखाओं,
फूल-पत्तियों-परिंदों के साथ
एक मजबूत घने वृक्ष में…l
हाँ,सृजन के लिए ही तो गढ़ा है
प्रकृति ने मुझे,
एक अविचल दरख़्त की भांति…ll
#शिरीन भावसार
परिचय:शिरीन भावसार का जन्म नवम्बर १९७५ में तथा जन्मस्थान-इंदौर (म.प्र.) हैl आपने एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) की शिक्षा रायपुर (छग) में ली है,और शादी के बाद वर्तमान में वहीँ निवासरत हैंl कार्यक्षेत्र की बात करें तो आप कला-शिल्प तथा लेखन में सक्रिय होकर सामाजिक क्षेत्र में दृष्टि बाधित संस्था और विशेष बच्चों की संस्था से जुड़ी हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-नई कविता,छंदमुक्त कविता,मुक्तक एवं ग़ज़ल हैl कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं सहित वेबपत्रिका में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-अपने विचारों को दृढ़ता से रखना,सामाजिक मुद्दों को उठाना,मनोभाव की अभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि हैl
बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं शिरीन जी
बहुत बहुत बधाई एवम शुभकामनाएं इस सुंदर सजीव रचना के लिए श्रीमती शिरीन भावसार जी