मंजिल रूठ गई पैरों से,
श्रम से दूर सफलता भागी
आँखों में आ बैठा मरुथल,
पथ को खाने लगीं दिशाएँ
कहो मित्र!रोएं या गाएं।
आंगन में उग रही उदासी,
चौराहों पर खड़े लुटेरे
छीन रही हिंसा पगलाई,
सारे सपने तेरे-मेरे
सम्बन्धों का उपवन उजड़ा,
फल स्वार्थ के आक-जवासे
छोटा हुआ प्यार का आंगन,
कद से ऊंची हुईं व्यथाएँ
कहो मित्र!रोएं या गाएं।
दर्द हुआ आवारा बेटा,
कदम-कदम करता मनमानी
बूढ़ी हुई उमंग पर्व की,
पीड़ाएँ हो गईं सयानी
अंधियारे दिन,पगली रातें,
अंधा सूरज,रुग्ण देवता
युग के ब्रह्मा हमें बताओ,
क्यों बदली ये परिभाषाएं
कहो मित्र!रोएं या गाएं।
पूत कमाल कहे पागल है,
सिर धुन-धुन रोरहा कबीरा
शब्दों के दलाल ने बेेचे,
एक दाम पर कोयला-हीरा
शब्द,अर्थ,लक्षणा,व्यंजना,
सब चुभते हैं शूल सरीखे
लहूलुहान करें तन-मन को,
नागफनी होतीं भाषाएं
कहो मित्र!रोएं या गाएं।
वे त्रिशूल लेकर निकले हैं,
इनके हाथों में तलवारें
वे काटें कोमल कलियाँ,
ये सोनजुही की गर्दन मारें
नाव कहाँ जाकर ठहरेगी,
ये तो सिर्फ विधाता जाने
औघट घाट,बाढ़ की नदियां,
गरज रहीं पागल झंझाएं
कहो मित्र!रोएं या गाएं।।
#डॉ.रामस्नेही लाल शर्मा ‘यायावर’
परिचय : डॉ.रामस्नेही लाल शर्मा ‘यायावर’ का जन्म फिरोजाबाद जनपद के गाँव तिलोकपुर में हुआ है। एमए,पीएचडी सहित डी.लिट्. की उपाधि आपने प्राप्त की है। मौलिक कृतियों में २७ आपके नाम हैं तो ११० में लेखन सहभागिता है। सम्पादन में भी १२ में आपकी सहभागिता है,जबकि आकाशवाणी के दिल्ली, मथुरा,आगरा व जबलपुर केन्द्रों से रचना प्रसारण हुआ है। राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए आपने नेपाल,बहरीन,सिंगापुर,दुबई,हांगकांगऔर मकाऊ आदि की वेदेश यात्रा की है। साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से एमेरिटस फैलो चयनित रहे हैं। आप नवगीत कोष के लिए शोधरत हैं तो अभा गीत व कहानी प्रतियोगिता में आपकी रचनाएँ प्रथम रही हैं। आपके निर्देशन में ४१ विद्यार्थियों ने शोध उपाधि पाई है। इतना ही नहीं,डॉ. यायावर के साहित्य पर ३ पीएचडी और ५ लघुशोध हो चुके हैं। आपका निवास फ़िरोज़ाबाद में ही है।