कारवां न चले मेरे संग में तो क्या,
राह मेरी अकेले भी कट जाएगी।
पग में हैं भरे मेरे काँटें तो क्या,
चुन के उनको हटाना है आता मुझे।
ज़ख़्म सहकर मैं मुस्कुराता सदा,
दर्द जीना हमेशा सिखाता मुझे॥
देखकर मुश्किलें जो सहम जाऊँ मैं,
आ के नाकामी मुझसे लिपट जाएगी।
कारवाँ न चले मेरे संग में तो क्या,
राह मेरी अकेले भी कट जाएगी॥
मैं नहीं चाहता हूँ कि भौंरा बनूँ,
और कलियाँ मुझे अवरोधित करें।
बोलो फूलों से कैसे मैं लिपटा रहूँ ,
जबकि बिखरे हो हर ओर शोणित बहे ??
डर समाया जो अंतस में ऊँचाई का,
उड़ने से पहले हीं पाँखें कट जाएगी।
कारवां न चले मेरे संग में तो क्या,
राह मेरी अकेले भी कट जाएगी॥
मेरी चाहत है मैं वो दीया बन सकूँ,
सब अंधेरा मिटा दे जो संसार से।
दूँ पुन: एक उपहार दुनिया को मैं,
सबका आधार हो मेरे उपकार से॥
मैं जगत का गुरू फिर से कहलाऊँगा,
रात अंधेरी इक दिन ये छँट जाएगी।
कारवाँ न चले मेरे संग में तो क्या,
राह मेरी अकेले भी कट जाएगी॥
#आशुतोष कुमार ‘विद्रोही’
परिचय:आशुतोष कुमार ‘विद्रोही’ का नाता शहर मुजफ्फरपुर(बिहार)से है। आपकी जन्मतिथि ४ मई २००२ और जन्मस्थान-मुज़फ्फरपुर है। वर्तमान में वर्ग १० में अध्ययनरत विद्रोही काव्य लेखन,गीत (वीर रस,श्रंगार रस) रचते हैं। आप सोशल मीडिया के मंच पर भी सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-हिन्दी का उत्थान और आमजन कॊ देशहित की प्रेरणा देना है।