रेखा मोहल्ले की सबसे सुंदर लड़की थी। हर कोई उसके लिए जान देने को तैयार था। रेखा को पढ़ने का शौक था। वह मनोविज्ञान की प्राध्यापक बनना चाहती थी। उसका मानना था कि,समाज में बहुत से लोग मानसिक बीमारी का शिकार हैं,लेकिन उसे नहीं मालूम था कि,लोगों की मानसिकता को बदलना इतना आसान नहीं,जितना वो समझती है।
खूबसूरत शरीर के साथ खूबसूरत दिल और तेज दिमाग की मालकिन थी रेखा। एक दिन रोज की तरह वह घर से महाविद्यालय के लिए निकली, तो रास्ते में लड़कों का झुंड खड़ा हो उसे ताक रहा था। लड़कों की गंदी नजर उसके बदन को घूर रही थी। खुद को दुपट्टे से ढंकती हुई वो जैसे ही निकलने को आगे बढ़ी ,एक लड़के ने उस का दुपट्टा छीन लिया। रेखा ने विरोध करने के लिए दूसरे लड़के(रवि) को खींचकर थप्पड़ मार दिया और बोली कि,जितना समय लड़कियों के पीछे बर्बाद करते हो,कुछ पढ़ने में लगाया होता तो इंसान बन जाते।
उसकी इस बात से रवि की मर्दानगी को ठेस लगीl वो बोला-तुम क्या कहना चाहती हो???
क्या मैं इंसान नहीं? तुम्हें जानवर नजर आता हूँ क्या मैं?
रेखा ने गुस्से में घूरकर कहा,-हाँ,तुम सबके-सब जानवर ही बन गए हो। मुझे पढ़ाई पूरी कर लेने दो,फिर तुम्हारे दिमाग का ईलाज करुँगी मैं।
ये कहकर रेखा अपना दुपट्टा ले चली गई।
रास्ते में ख़ड़े रवि से उसके साथियों ने कहा कि,इसका कुछ करना होगा,वरना बेइज्जती कर देगी।
रवि बाजार गया और तेजाब की बोतल खरीदकर रेखा के आने का इंतजार करने लगा। शाम को ४ बजे रोज की तरह हँसती-चहकती रेखा,रवि के षडयंत्र से अनभिज्ञ चली आ रही थी। सामने से एक तेज दोपहिया गाड़ी आती दिखी,जब तक रेखा को कुछ समझ में आता,वो दर्द से चीख रही थीl रवि तेजी से रेखा पर सारा तेजाब फेंककर फरार हो चुका था।
रेखा दर्द से तड़पती हुई लोगों से मदद के लिए गुहार लगा रही थी।
तेजाब ने न केवल रेखा के जिस्म को जलाया था,उसके आत्मविश्वास को भी जला दिया था। औरत होने की सजा उसके तन और मन दोनों को चुकानी पड़ी।
क्यों एक मर्द की मर्दानगी औरत को दबाकर रखने से ही साबित होती है ? आज भी कितने घर हैं,जहाँ सिर्फ औरत को ही उसके नारी होने के लिए समाज के तेजाब को झेलना पड़ता हैं..l
#संध्या चतुर्वेदी