जब भगवान देता है छप्पर फाड़कर देता है,शायद यह कहावत अब दोस्तों के लिए हो गई है। `फेसबुक` वह छप्पर है,जिसे फाड़कर दोस्त टपकते हैं। ७० और ८० के दशक में अंकल-आंटी टपकते थे,वे आज भी टपक रहे हैं। दादा की उम्र का हो,या बिटिया की उम्र की लड़की,अंकल-आंटी के सम्बोधन से काम चल जाता है। कुछ बिगड़ जाते हैं तो कुछ कह जाते हैं,`तुझे शर्म नहीं आती मुझे आंटी कहते,आंटी होगी तेरी अम्मा` या फिर `बुडढा होगा तेरा बाप।` अंकल-आंटी के बाद अब दोस्त का टपकना शुरू हो गया है।
फेसबुक आने के बाद दोस्तों की बाढ़ आ गई है। यह ऐसा सैलाब है,जिसमें सभी रिश्ते बहकर दोस्त में तब्दील हो गए हैं। अनचाहे बालों की तरह यह हर जगह उग आए हैं, दोस्त। जहां तक नजर जाती है,दोस्त ही दोस्त नजर आते हैं,लेकिन जिगरी दोस्त नजर नहीं आता। दिखाई देते दोस्त-कीचड़ में सने,सूट-बूट में,कुर्ता-पाजामा में,धोती में,सलवार में,कुर्ते में, गुण्डे दोस्त,गुण्डी दोस्त..दोस्त और तो और छुपे रुस्तम की तरह दोस्त के दोस्त भी बन जाते हैं। आप उन्हें नहीं जानते,पर उनकी चोर नजरें आपकी हर क्रिया (पोस्ट) का पोस्टमार्टम करती है। आपकी अभिव्यक्ति आपकी शर्मिंदगी का कारण बन गई है। आप अपनी बात दोस्तों के लिए पोस्ट करते हैं,मालूम पड़ता है कि आपके दोस्त के दोस्त जो आपके दुश्मन हैं,वो आपकी पोस्ट के चीथड़े-चीथड़े कर देते हैं।
फेसबुक पर पसंद(लाइक) मिलने पर ऐसा लगता है,जैसे कुबेर का खजाना मिल गया,जितनी बेटे के जन्म की खुशी होती है,उतनी खुशी पोस्ट को करने के बाद मिल जाती है। प्रतिक्रिया या टिप्पणी (कमेंट) करने के बाद लगता है,बल्ले-बल्ले हो गई। फेसबुक दोस्तों के लिए है। आप उन्हें जानते हैं या नहीं। दोस्त कुकुरमुत्ते हो गए हैं। ये दोस्त किसी काम के नहीं। घर में मौत हो जाए,आप पोस्ट करेंगे-मेरा बाप मर गया। उसकी अंत्येष्टि बारह बजे है,बारह बजे तक जमींदार के जूतों की तरह ५० पसंद और २०० भागीदार(शेयर) आ जाएंगे और तो और १५० टिप्पणी आ जाएगी। बाप आपका मरा,पसंद वो कर रहे हैं,यानी बाप के मरने की खुशी है।
काश २५-३० बाप होते तो पसंद करने वालों की संख्या ४०० हो जाती,एक रिकार्ड बन जाता..`मेरे बाप मरे थे,तो ४०० पसंद आई थी,तेरा बाप मरा तो २५ पसंद..। मेरे बाप का मरना,तेरे बाप के मरने से ज्यादा पसंद किया गया।
मां भी दोस्त है,बाप भी दोस्त है,बहन भी दोस्त,बेटा भी दोस्त,दुश्मन भी दोस्त है,चिरकुट भी दोस्त,धनपत भी दोस्त, लेकिन सही मायने में कोई दोस्त नहीं है। दोस्त कोई नहीं बचा,सभी `फ्रैंड` हो गए है,जो केवल पसंद करते,साझा करते है,टिप्पणी करते हैंl ऐसा कोई नहीं,जो मजबूरी में सहारा दे सके,बाप की अर्थी को कांधा,किसान को कर्ज,सेना के जवान के बच्चों को आसरा। लानत है ऐसे `फ्रैंड्स` पर।
राही
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl