संस्कार 

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prabhat dube

एक मुहल्ले में दो परिवार रहा करते थे,विमल वर्मा और शांति सहाय। विमल वर्मा की पत्नी का नाम दुर्गा देवी और शांति सहाय की पत्नी का मृदुला थाl शांति सहाय कारोबारी थे,मन से शांत निर्मल स्वभाव दिल से कोमल और परिवार की शांति उनकी पूंजी थी। उनकी पत्नी भी बड़ी समझदार थी,वह अपने परिवार के बारे में सदा सोच विचार करके ही कोई कार्य करती थीl इसके विपरीत विमल वर्मा कर्महीन व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे,उनका कार्य था लोगों के बीच जाकर गप्पे हाँकना,दूसरे की बातों में बेवजह दखल-अंदाजी करना,लोगों से छोटी-छोटी बातों पर झगड़े करना तो उनकी पत्नी उनसे कहीं ज्यादा थी। वो किसी से न लड़ पाती,तो अपने पति से ही झगड़ा करने लगतीl वह अपने परिवार की शांति को देखना बिल्कुल पसंद नहीं करती थीl वह बेवजह अपने पति से लड़ती और बच्चे हो जाने के बाद अपने बच्चों से। शांति सहाय और विमल वर्मा एक मुहल्ले में रहते थे,जिसके कारण उन दोनों परिवार में अच्छी दोस्ती थी।
शांति सहाय शाम के समय अपने दरवाजे के पास बैठते थे,एक दिन दोनों दोस्त आपस में बात कर रहे थेl शांति सहाय कहते हैं-जानते हैं विमल बाबू,पिता बनने वाला हूँl तभी विमल बाबू भी कहते हैं-पिता तो मैं भी बननेवाला हूँl शांति सहाय कहते हैं-तो आपने मुझे पहले बताया नहींl अरे क्या बताना,दो बच्चे तो पहले ही हमारा सिर चाटे जा रहे हैं,ऊपर से ये बीबी अलग। शांति सहाय कहते हैं-आप ऐसा क्यों कहते हैं,आप कोई काम कीजिएl दिन बेकार करने से कोई फायदा नहीं,आप अपने घर की लड़ाई को दबाइए,बढ़ाइए नहींl इससे आपके बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ेगा। तभी विमल बाबू कहते हैं-अरे गलत प्रभाव क्या पड़नाl अब तो मैं सब पिल्लों को भूखा मारूँगा,भूखे रहेगें कुत्तेl कभी जवानी में मेरी तरफ आँख उठाकर देखने की कोशिश भी नहीं करेंगे। शांति सहाय समझ चुके थे,`भैंस के आगे बीन बजाए,भैंस बैठे पघुराय।`
मूर्ख के सामने नसीहत देने से कोई फायदा नहीं।
समय स्थिर नहीं रहता,संयोगवश दोनों के यहाँ लड़का हुआl शांति सहाय बहुत खुश थेl विमल वर्मा के पास न दुःख था,न सुख। दोनों परिवार के बच्चे बड़े होने लगे लेकिन पता नहीं,विमल वर्मा अपने छोटे लड़के से अत्यधिक नफरत करने लगे और उनकी पत्नी तो उस बच्चे को देखना भी पसंद नहीं करती थी। भला कोई अपने बच्चे के साथ ऐसा कर सकता है क्या? इसका उत्तर है हाँ,ऐसा ही होता है जब कोई ऐसे स्वभाव वाले माता-पिता मिल जाए तोl वर्मा जी ने अपने बाकी बच्चों के मन में भी ये डाल दिया कि,वो तुम्हारा भाई नहीं है, लेकिन उस बच्चे  में खास बात ये थी कि,वह अपने माता-पिता के बिल्कुल विपरीत थाl वह झूठ से नफरत करता था,और मन से स्वाभिमानी था। यही कारण था कि विमल वर्मा अपनी पत्नी एवं बच्चों के साथ एकता जाहिर कर इस बच्चे से नफरत करना सिखलाते।
उनके परिवार ने उस बच्चे के साथ इतनी नफरत की कि, वह बच्चा सबसे बेहद नफरत करने वाला खुद बन गयाl वर्मा जी ने उस बच्चे को इतना प्रताड़ित किया,वह जो सबसे बिल्कुल अलग थाl आज अलग स्वभाव होते हुए भी बिल्कुल बेकार हो गयाl उसकी उम्र बढ़ती गई,वह जब तक छोटा था सहन करता गया,लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उसकी सोचने-समझने की शक्ति से जागता गया।
वह अपने माता-पिता का अब घोर-विरोध करता था,तो विमल वर्मा इसे जानवर की तरह मारते थेl वह अब बड़ा हो चुका था,लेकिन उसकी शारीरिक शक्ति बिल्कुल क्षीण थी,वह अब बहुत कमजोर हो चला थाl वह समाज से डरता था कि,अपने माता-पिता का विरोध सबके सामने करने से समाज उसे ही दोषी करार दे देताl उसके पिता भी इस बात की धमकी देते थे,-तुम्हें सबके सामने बदनाम कर दूँगा।
समय स्थिर नहीं रहता हैl शांति सहाय मुहल्ला छोड़कर जा चुके थे,इधर वर्मा जी की आंतरिक कलह उनके परिवार को बर्वाद,तवाह कर चुकी थीl वर्मा जी को ज़रा भी अपने बच्चों के बारे में फिक्र न थी। जिंदगी की धारा बिल्कुल नदी की धारा जैसे है,जिसमें चलती हुई नाव का खेवैया को समझदार होना जरूरी होता है,नहीं तो नाव और नाविक दोनों डूब जाते हैं और खेवैया को तब पता चलता है कि हमारी लापरवाही के कारण सब कुछ डूब गया।
मैं तो किसी तरह बच गया,लेकिन मेरी नाव चली गईl जिंदगी भी उसी धारा पे सवार,जिसमें नाव और नाविक होते हैं और उस पे सवार उसके कुछ यात्री,माँ बिल्कुल उसी नाव की तरह होती है और पिता नाविक तो बच्चे बैठे यात्री की तरह,और यही प्रक्रिया पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहती हैl किसी ने भी इस प्रक्रिया को तोड़ने की कोशिश की है तो उसकी नाव डूब जाती है, और उसमें बैठे उसके बच्चे उस यात्री की तरह है कि अगर वह बच गया तो आपका त्याग कर देगाl बिल्कुल यही घटना वर्मा जी के साथ हुईl अब उनके सारे बच्चे उनसे दूर होते जा रहे थेl समय उन्हें अपनी तेज़ रफ़्तार से बहा चुका था,वो एक गलत नाविक साबित हो चुके थे। अब संयोग से शांति सहाय एक बार वर्मा जी को मिलेl वर्मा जी-सहाय साहब आपl  
हाँ,मैं यहाँ काम के सिलसिले से आया था।
सहाय साहब आपका वह जो लड़का था,वह अभी क्या कर रहा है?
वह तो डॉक्टर बन चुका है।
वर्मा जी आपके बच्चे क्या कर रहें हैं?
सभी मुझसे दूर हो चुके हैंl जो एक छोटा लड़का था,अब लाचार हो चुका हैl वह दुनिया का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सका,उसको दुनिया का ज्ञान नहीं होने का कारण भी मैं ही हूँ। वर्मा जी रो पड़ेl शांति सहाय-मैंने बताया था न वर्मा जी,अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिए और बच्चों की भावना की कद्र कीजिएl बच्चों की जिंदगी बनाने में कभी कोई अलग से नहीं बनता,बल्कि अच्छे संस्कार और अच्छी परवरिश ही उसे आगे बढ़ने में उसे मदद करती है।
                                                  #प्रभात कुमार दुबे 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।