आँगन का टेढ़ापन
कब तक दुहराओगे,
नाचो जैसे भी हो
अपनी ही थिरकन सेl
तालों में बन्द करो
कितनी ही कमजोरी,
आखिर में बाहर तो
आनी ही आनी हैl
कितना ही मना करो
स्वाभाविक भूलों को,
स्वागत ही होता है
मन से जब मानी हैl
भारी तो बातें हैं
बातों की तर्ज नहीं,
बोलो वह जो निकले
अपनी ही धड़कन सेl
थोथी स्वीकृतियों से
कब तक भरमाओगे,
कब तक बहलाओगे
झूठे उद्गारों सेl
टूटी लय-ताल लिए
जीवन के गायन को,
कब तक गा पाओगे
हकले हुंकारों सेl
केवल इतिहास नहीं
अपनी पहचान रहेl
आगत के स्वागत में
गाएं अंतर्मन सेl
पहले किसने कैसा
नाचा इस आँगन में,
छोड़ो यह, तुम अपनी
शैली में ठुमक उठोl
कब तक बहलाओगे
झूठी पग छम-छम से,
नख-शिख संचालन का
संगम ले चमक उठोl
माना गन्धर्व नहीं
न तुम किन्नर-लोकी,
जो भी हो किलक उठो
स्वाभाविक नर्तन सेl
# जगदीश पंकज
परिचय: जगदीश प्रसाद जैन्ड का जन्म १० दिसम्बर १९५२ को उत्तर प्रदेश के पिलखुवा(जिला-गाज़ियाबाद) में हुआ है,जबकि निवास सेक्टर २,राजेन्द्र नगर,साहिबाबाद (गाज़ियाबाद) में है l बीएससी तक शिक्षित श्री जैन्ड की प्रकाशित कृतियाँ-‘सुनो मुझे भी(नवगीत संग्रह),’निषिद्धों की गली का नागरिक’ आदि हैl नवगीत के समवेत संकलन में ‘नवगीत का लोकधर्मी सौंदर्यबोध’,’गीत सिंदूरी-गन्ध कपूरी’ सहित ‘सहयात्री समय के’ आदि भी आपके नाम है, तो साझा संग्रह में ‘सारांश समय का’ है l आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब पत्रिकाओं में गीत,नवगीत,समीक्षा व कविता में रूप में प्रकाशित हैं l आकाशवाणी दिल्ली से काव्य-पाठ का प्रसारण भी हुआ है l बतौर सम्मान आपको मुरादाबाद सहित अन्य स्थानों पर ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान- २०१५’ और ‘नटवर गीत साधना सम्मान-२०१६’ से भी सम्मानित किया गया है l सम्प्रति से आप बैंक से वरिष्ठ प्रबन्धक के पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन करते हैं l