इक मुहब्बत भरी डगर रखिए,
दिल का आबाद नगर रखिए l
कट नहीं सकता है सफ़र तन्हा,
जीस्त का कोई हमसफ़र रखिए l
क्यूं इनायत है बस परायों पर,
मेरी जानिब भी तो नज़र रखिए l
जानिए क्या अगल-बगल हो रहा,
ऐसे मत खुद को बेख़बर रखिए l
डर के जीना कभी नहीं यारों,
खुद को सच कहने में निडर रखिए l
काटिए मत शज़र पुराने भी,
साए के वास्ते शज़र रखिए l
जो बना दे परायों को अपना,
‘कल्पना’ बात का हुनर रखिए l
परिचय : कल्पना गागड़ा हिमाचल राज्य के शिमला में रहती हैं। पेशे से आप सरकारी शिक्षा संचालनालय में अधीक्षक(वर्ग २)हैं। लिखने की वजह शौक है।