साथ तेरे मैं कैसे रहूंगी सदा,
प्रीत में उलझनें तो बहुत देखी हैं,
कैसे बरखा करूँ जुल्फ की छाँव की..
तोड़ दूँ बेड़ियां किस तरह पाँव की,
बात करते हो मधुवन की तुम तो सदा..
मैंने आँखों के सावन बहुत देखे हैं।
साथ,कैसे बन्द प्रीत की खिड़कियाँ खोल दूँ,
तुझपे कर लूँ यकीं
और हाँ बोल दूँ,
गोरे गालों पे लिखने दूँ कैसे ग़ज़ल..
दिल के टूटे से दर्पण बहुत देखे हैं..
साथ…।
तुम हो बादल आवारा,ओ मेरे सनम,
तोड़ जाओगे एक पल में सारी कसम..
भूल जाओगे परदेस जा के मुझे,
पंछी परदेशी प्रीतम बहुत देखे हैं।
साथ,हाँ ये सच है तेरी बन्दगी मैं करुं,
तेरे नामों की माला भी जपती रहूँ..
पर कैसे समर्पित करुं ये दिन,
वासना के निर्वासन बहुत देखे हैं..
साथ…।
तुझसे ऐसे मिलन करना चाहे स्वरा,
नदियाँ सागर से,बादल से मिलती धरा..
मांग सिंदूर भर के,बना लो दुल्हन,
तन्हा साँसों के बिखरन बहुत देखे हैं..
साथ…॥
#स्वराक्षी स्वरा