Read Time6 Minute, 1 Second
मालवी काव्य संग्रह “म्हारा भागीरथ का भई “रचनाकार गौरीशंकर उपाध्याय “उदय “३० मालवी रचनाओं का संग्रह मन में भी मिठास घोलडेता है | मालवी बोली की तासीर का असर है | मीठी बोली ऐसी की मानों शहद घुली हो | बोलियों को बचाने में ये अंक महत्व पूर्ण भूमिका अदा करता है | उदय जी बातचीत की शैली में 80 प्रतिशत बोली मालवी बोली का प्रयोग करते है | और यही सादगी उनकी रचनाओं में झलकती है | झलक निगम सांस्कृतिक न्यास उज्जैन प्रकाशक ने एक नई छाप छोड़ी है | | उन्होंने साहित्य विद श्री झलक निगम के जो की उनके गुरु के ऊपर मालवी दिवस पर सम्मानपूर्वक कहा है कि “आपका आसिस से आज यो गौरीशंकर उपाध्याय “उदय ‘ पोथी को पेलो फूल मालवी दिवस जो तमारो सपनो थो उपे बरसई रियो है | “संपादन जेड श्वेतिमा निगम ,डॉ भगवती लाल राजपुरोहित ,श्री नरेंद्र श्रीवास्तव “नवनीत “प्रो शेलेंद्रकुमार शर्मा ,बंशीधर “बंधु ” ,ललित शर्मा , श्रीमती माया मालवेन्द्र बदेका ,डॉ राजेश रावल “सुशील “ने बड़े ही खूबसूरत तरीके से मालवी काव्य संग्रह पर अपनी बात रखी साथ ही हर पक्तियों की बेहतर ढंग से व्याख्या की जो तारीफे काबिल है | आवरण पृष्ठ मालवी की लोक छवि को दर्शाता है जो काव्य संग्रह से मेल खाता है | शीर्षक समाहित रचना “चरड़ मरड की जूती “में पेरवास के दर्शन करवाए कोरदार धोती बांधीं /लठ्ठा की पेरी बंडी /झरमर -झरमर कुर्तो पेरयो /कांधा पे सफी देय “म्हारा भागीरथ का भई | मालवी गीत -मेला की मनवार वाकई मेले की सैर करवाते | वर्तमान में मनवार तो जैसे खत्म होने की कगार पर जा पहुंची | मनवार का अपना एक अलग महत्व होता है | चुनाव को चस्को -हास्य रंग लिए रचना चस्के की छाप छोड़ती है | वही लोक संस्कृति “संजा बाई का मांडना ” में उदय वंदना करे तमारी म्हारी संजा रानी /अगले बरस तू बेगा आजे मालवा की पटरानी ” में कवि ने संजा के बनने वाले मांडनों में महिमा का बखान किया | देखा जाए तो संजा मालवा और निमाड़ में उत्सव के रूप में मनाई जाने लगी है | मालवी बोली की कई रचनाये एक से बढ़कर एक है | और विभिन्न विषय हास्य के संग है | पढ़ने और गुनगुनाए जाने की क्षमता गीत रखते है | कवि का काव्य संग्रह म्हारा भागीरथ का भई बोली के हित में अवश्य परचम लहराएगा | हार्दिक बधाई और शुभकामना |
कवि – गौरीशंकर उपाध्याय “उदय “
मूल्य -151/-
प्रकाशन -साई कम्प्यूटर एंड प्रिंटर्स उज्जैन
चित्रावली – रुचिर प्रकाश निगम
सफर
पिता की किताबें
जिन्हें लिखी उन्होंने
रात रात भर जाग कर
कल्पना के भावो तले
घर की जिम्मेदारी निभाने के साथ |
साहित्य की पूजा और |
साहित्य का मोह भी होता
जो लगता है तो
जिंदगी के अंतिम सफर तक
साथ नहीं छोड़ता
इसलिए कहा भी गया है कि
शब्द अमर
पिता का चश्मा /कलम/कुबड़ी
अब रखे उनकी किताबों के संग
लगता घर म्यूजियम /लायब्रेरी हो
यादों की |
माँ मेहमानों को
बताती /पढ़ाती
पिता की लिखी किताबें
मै भी लिखना चाहता
बनना चाहता
पिता की तरह
मगर ,जिंदगी के
भागदौड़ के सफर मे
फुर्सत कहा
मेरे ध्यान ना देने से
लगने लगी
पिता की किताबों पर दीमक |
साहित्य का आदर/सम्मान होगा
तब ही बनूँगा
पिता की तरह लेखक
पिता की किताबों के संग
मेरी किताबों को
अब बचाना है दीमकों से
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।
Post Views:
597
Mon Aug 6 , 2018
ऐसे उकेरे हैं मेरे ज़ेहन में अपने नक्शे कदम। नाम न ले गर साँस तेरा,तो मेरा घुटता है दम। यूं तो जिंदगी में अब,तेरा साया भी कहीं नही तुम यही मेरे पास है ,कैसा ये मेरा है भ्रम। फेर ली जिसने नज़रे आज सरे राह देख कर, कहते थे लोगो […]