एक क्रूर राजा था। उसने राज्य में संगीत,कला और प्रेम करने पर प्रतिबंध लगा रखा था। उसके दरबार में एक युवा राजकवि था। सुंदर-सुंदर कविताएँ रचता था। राजकुमारी उसकी कविता,सादगी,सुंदरता व प्रतिभा पर मोहित थी। राजा को इसकी भनक लग गई। क्रोधित हो उसने राजकुमारी को महल में नजरबंद कर दिया और राजकवि को ढूँढ़कर उसे प्राणदंड देने का आदेश सेनापति को दिया। सेनापति उनके पवित्र प्रेम का साक्षी था,मगर राजा का आदेश मानना उसकी बाध्यता थी।
पूरे राज्य में मुनादी करा दी गई। राजकवि की तलाश शुरु हो गई,पर वह कहीं नहीं मिला। राजा का क्रोध और बढ़ गया। अंतत: उसने राजमहल की तलाशी लेने का निश्चय किया। रात्रि में सेनापति और सैनिकों की टुकड़ी के साथ पूरे राजमहल की घेराबंदी करवा दी गई। एक-एक कक्ष की तलाशी शुरु हुई। किसी कक्ष में कोई नहीं मिला। अब एक आखिरी कक्ष शेष बचा था। सेनापति ने उस कक्ष का दरवाजा खोला,तो कोने में दीपक की लौ में उसे दो परछाईंयाँ नजर आईं। निश्चिंतता की सांस लेते हुए उसने राजा से कहा-`यहाँ भी कोई नहीं है,महाराज।` राजा सेनापति और सैनिकों को लेकर चला गया।
उस कक्ष से एक गुप्त रास्ता राज्य के बाहर जंगलों में खुलता था। राजकवि और राजकुमारी उस रास्ते बाहर निकल गए।परंपरा,क्रूरता और संवेदनहीनता की कठोर,पथरीली चट्टान का सीना चीर कर प्रेम ने अपनी जमीन तलाश ली थी। जवां दिलों में पलने वाला निश्चल प्रेम उसी दिन से राजसत्ता और दीन-दुनिया के बंधनों से आजाद हो गया थाl
#विजयानंद विजय
परिचय : लेखक विजयानंद विजय बक्सर (बिहार)से बतौर स्वतंत्र लेखक होने के साथ-साथ लेखन में भी सक्रिय है |