प्रेमचंद: समाज का दर्पण

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धनपत राय श्रीवास्तव, जी हां मुंशी प्रेमचंद का मूल नाम यहीं था इस नाम से कई लोग अपरिचित हो सकते है लेकिन शायद ही कोई यह जानता हो कि 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के पास लमही गांव में एक डाकघर में काम करने वाले मुंशी के यहां साहित्य का वो सूरमा पैदा होगा जिसे सदियों तक याद किया जाएगा। आज उनकी 144वीं जन्मजयंती पर सभी साहित्यप्रेमी उन्हें याद कर रहे है। एक महान कथाकार, उपन्यास सम्राट से बढ़कर वे एक जनलेखक थे। मुंशी प्रेमचंद के बारे में नौवीं कक्षा में प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित एक पाठ पढ़ा था ‘प्रेमचन्द के फटे जूते’ जो आज भी मुझे अच्छे से याद है। भारतीय साहित्य का इतिहास उनके ज़िक्र के बिना अधूरा है। प्रेमचंद की सभी कहानियों ने समाज के दर्द, संवेदना और यथार्थ को छुआ है। बरसों पहले उनकी कहानियों में जो मानवीय मूल्यों की चर्चा होती है, वो आज भी प्रासंगिक है! ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में एक जगह पर हरिशंकर परसाई लिखते है “फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?” लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है और वे आगे लिखते है “नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।” अमूमन देखा जाता है कि समाज की परंपरा-सी है वह अच्छे अवसरों पर पहनने के लिए अपने वे कपड़े अलग रखता है, जिन्हें वह अच्छा या नया समझता है। प्रेमचंद के कपड़े ऐसे नहीं थे जो फ़ोटो खिंचाने लायक होते। ऐसे में घर पहनने वाले कपड़े और भी खराब होते। हरिशंकर परसाई को तुरंत ही बाद में ध्यान आता है कि प्रेमचंद सादगी पसंद, आडंबर तथा दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उनका रहन-सहन दूसरों से अलग है, इसलिए वे अपनी टिप्पणी बदल देते है।
आज के समय वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में बहुत बदलाव आया है। लोग वेशभूषा को सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मानने लगे हैं। लोग उस व्यक्ति को ज्यादा मान-सम्मान और आदर देने लगे हैं जिसकी वेशभूषा अच्छी होती है। वेशभूषा से ही व्यक्ति का दूसरों पर पहला प्रभाव पड़ता है। हमारे विचारों का प्रभाव तो बाद में पड़ता है। आज किसी अच्छी-सी पार्टी में कोई धोती-कुर्ता पहनकर जाए तो उसे पिछड़ा समझा जाता है। इसी प्रकार कार्यालयों के कर्मचारी गण हमारी वेशभूषा के अनुरूप व्यवहार करते हैं। यही कारण है कि लोगों में आधुनिक बनने की होड़ लगी हुई है।
प्रेमचंद की कहानियों ने समाज के गहरे दर्द को छुआ है उनकी कथाओं ने गरीब, दलित और महिलाओं की आवाज को बुलंद किया है। उनके कथनों में समाज के उन पहलुओं को उठाया गया है जिन्हें आमतौर पर लेखक नहीं उठाते।
प्रेमचंद ने कभी पर्दे को अर्थात् लुकाव-छिपाव को महत्व नहीं दिया। उन्होंने वास्तविकता को कभी छुपाने का प्रयत्न नहीं किया। वे इसी में संतुष्ट थे कि उनके पास छिपाने-योग्य कुछ नहीं था। वे अंदर-बाहर से एक थे। यहाँ तक कि उनका पहनावा भी अलग-अलग नहीं था।
हरिशंकर परसाई अपनी तथा अपने युग की मनोभावना पर व्यंग्य करते है जो स्थिति उस समय थी वही आज भी है। हम पर्दा रखने को बड़ा गुण मानते हैं, जो व्यक्ति अपने कष्टों को छिपाकर समाज के सामने सुखी होने का ढोंग करता है, हम उसी को महान मानते हैं। जो अपने दोषों को छिपाकर स्वयं को महान सिद्ध करता है, हम उसी को श्रेष्ठ मानते हैं।
दोनो कालजयी कथाकारों ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी है। उनकी कहानियों ने समाज के संवेदना को जागृत किया है और मानव मूल्यों को प्रकाशित किया है।
प्रेमचंद की कथाएं आज भी हमें जीवन की सच्चाइयों से रूबरू करवाती है और उनकी विरासत हमेशा के लिए अमर रहेगी!

नैवेद्य पुरोहित,

इन्दौर, मध्यप्रदेश

लेखक_परिचय- अपनी पत्रकारिता की यात्रा दसवीं कक्षा से 16 बरस की उम्र में इंदौर के साप्ताहिक समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इन्दौर और मासिक पत्रिका पालीवाल सखी से शुरू की। पत्रकारिता में विरासत पाकर मैं भाग्यशाली हूं, अपने परिवार की चौथी पीढ़ी जो पत्रकारिता में है और सदैव सेवा करती रहेगी! वर्तमान में बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा से बीएजेएमसी हिंदी ऑनर्स का फाइनल ईयर का छात्र हूं। साथ ही नोएडा में टाइम्स नेटवर्क में न्यूज लाइब्रेरी विभाग में इंटर्नशिप कर रहा हूं। जहां डेटा प्रबंधन, मेटाटैगिंग, आर्काइविंग, एलटीओ स्टोरेज जैसे विविध कार्यों में लगा हुआ हूं।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।