● डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘
धरा पर एक ओर ताप बढ़ा हुआ था, कुछ बौछार मिट्टी के सूखेपन को कम कर रही थीं, इसी बीच गुलारा बेगम जैसे किरदार को जनमानस के बीच में पहुँचाने वाले कुशल कुम्भकार की महायात्रा की ख़बर ने झकझोर दिया। मालवा-निमाड़ ही नहीं अपितु देशभर में ऐतिहासिक उपन्यासों को करीने से गढ़ने में माहिर प्रो. शरद पगारे का जाना साहित्य जगत् ही नहीं वरन् जनमानस को भी आहत कर गया।
व्यास सम्मान प्राप्त सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, वरिष्ठ साहित्यकार आदरेय प्रो. शरद पगारे जी ने शुक्रवार शाम को अंतिम साँस ली।
5 जुलाई 1931 को मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्मे पगारे जी दीर्घकाल तक इतिहास के प्राध्यापक रहे।
आपकी शिक्षा इतिहास में एम.ए. व पीएच.डी. रही। आप अध्यापन एवं लेखन से जुड़े रहे, साथ ही, शासकीय महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन में संलग्न रहे। शिल्पकर्ण विश्वविद्यालय, बैंगकॉक में अतिथि प्राचार्य के रूप में भी आपने कार्य किया।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल का विश्वनाथ सिंह पुरस्कार तथा वागीश्वरी पुरस्कार, अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार, सागर। मध्य प्रदेश लेखक संघ का भोपाल का अक्षर आदित्य अलंकरण, साहित्य मंडल का श्रीनाथ हिंदी भाषा भूषण सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मेलन का प्रयाग सम्मेलन सम्मान, निमाड़ लोक साहित्य परिषद् का संत सिंघाजी सम्मान, अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन का भारत भाषा भूषण सम्मान वर्ष 2020 का प्रतिष्ठित व्यास सम्मान भी आपको प्राप्त हुआ।
आपने उपन्यास विधा में गुलारा बेगम, गंधर्व सेन, बेगम ज़ैनाबादी, उजाले की तलाश, पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी का सृजन किया। कहानी विधा में एक मुट्ठी ममता, संध्या तारा, नारी के रूप, दूसरा देवदास, भारतीय इतिहास की प्रेम कहानियाँ, मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ जैसी किताबें लिखीं।
आपका लिखा नाटक बेगम ज़ैनाबादी की नाट्य प्रस्तुति श्री राम कला केन्द्र द्वारा क्षितिज नाम से किया गया। आपकी अनेक रचनाओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी हुआ।
गुलारा बेगम जैसे कई उपन्यास से साहित्य और हिन्दी को बलवान बनाने वाले पगारे जी की वह खनकती आवाज़ अब नहीं सुनाई देगी।
अंतिम यात्रा शनिवार 29 जून 2024 को लगभग दोपहर 12 बजे निज निवास से रीज़नल पार्क मुक्तिधाम जाएगी।
ऐतिहासिक उपन्यासों के अप्रतिम कुम्भकार को मातृभाषा उन्नयन संस्थान की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।
हिन्दी साहित्य के ध्रुव तारे का 93वें वर्ष की आयु में अस्त होना समग्र साहित्य जगत् की अपूरणीय क्षति है।
(लेखक मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)