कविता – सीख लें राम से

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त्रेता युग के प्रणेता से
सीख मानव जीवन युद्ध लड़ना
सीख राम से त्याग का अर्थ
प्रश्न नहीं, शंका नहीं, संकोच नहीं
मात-पिता, गुरुजन का आदेश सिर माथे धरना
सीख राम से सहर्ष वचन निभाना
जीवन युद्ध में सही समय पर तीर चलाना
गुरू की वाणी, बड़ों की शिक्षा, कुल मर्यादा रखना
मन में विश्वास, सहज भाव से रिश्तों को निभाना
ऊँच-नीच, जात-पात, वर्ण भेद सब व्यर्थ
शबरी, केवट, अहिल्या, जटायु, गिलहरी
सब को अपने हृदय बसाते हैं वो राम
शिव के भक्त, प्रकृति के संरक्षक
युद्ध कला के कुशल धुरंधर अजेय हैं राम
रीति, नीति, धर्म, मैत्री, देश, राज्य उत्थान खातिर
निज सुख-दुःख, भूल धर्म मार्ग पर चलना
अखंड देश, अखंड न्याय, अखंड आस्था रखना
मर्यादा में रह सदा प्रेम, प्रीत और जंग करना
भीतर के रावण को मार, राममय बनना
त्रेता युग के प्रणेता से
सीख मानव जीवन युद्घ लड़ना।।

#‌डाॅ. नीना छिब्बर
जोधपुर, राजस्थान

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