जन्म मरण कहे पीर,
ममता में बहे नीर।
माँ करुणा नस–नस में अविचल,
चिर चितवन दान मिला पल।
मंगल भाव भरे युग अंचल,
चित उपवन लहराये निर्मल।
माँ प्राण तृषित अधीर,
ममता में बहे नीर।।
सघन वेदना के पल–पल में,
मतलब के प्रतिकूल छल में।
तिमिर भरे अवगुंठन कल में,
मधुर आलोक–सी हलचल में।
देती वरदान भीर।
ममता में बहे नीर।।
स्वर्ण स्वप्न स्नेह सिक्त लघु तन,
प्राण करुण तरंग अंतर्मन।
नेह भरा हर श्वास दिव्य धन,
माँ, तुम प्रभु की हो नवल किरण।
प्राची में रश्मि धीर,
ममता में बहे नीर।।
शिथिल चेतना, तन जर्जर है,
प्राण त्याग पीर गंभीर है।
माँ मृत्यु उत्पीड़न ज़ंजीर है,
दु:ख में विचलित नैन नीर है।
रक्षा करो बहु पीर।
ममता में बहे नीर।।
सद्गुरु मेरे तुम रखवारे,
पंथ उजास करो मतवारे।
श्याम कृपा बरसे हर द्वारे,
माँ सम दूजा गुरु ही तारे।
संतप्त प्राण की पीर।
ममता में बहे नीर।।
#डाॅ. छगन लाल गर्ग ‘विज्ञ’
पता- आबूरोड, जिला – सिरोही
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