हिन्दी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हमारे नेता जिस दिन नौकरशाहों के वर्चस्व से मुक्त होंगे, उसी दिन हिंदी को उसका उचित स्थान मिल जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सात-आठ वर्षों में न जाने कितनी बार अपने ‘मन की बात’ आकाशवाणी से प्रसारित की है। विपक्षी दलों ने यह कहकर कई बार उसका मज़ाक भी उड़ाया है कि यह अपना प्रचार करने का एक नया पैंतरा मोदी ने मारा है। देश के ज़्यादातर बुद्धिजीवी इस मन की बात पर कोई ख़ास ध्यान भी नहीं देते लेकिन इस बार उन्होंने जो मन की बात कही है, वह वास्तव में मेरे मन की बात है। मातृभाषा दिवस पर ऐसी बात अब तक किसी प्रधानमंत्री ने की हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता। मोदी ने मातृभाषा के प्रयोग पर ज़ोर देने के लिए सारे भारतीयों का आह्वान किया है। लेकिन उनसे मैं पूछता हूं कि पिछले 7-8 साल में सरकारी कामकाज में मातृभाषाओं का कितना काम-काज बढ़ा है? अभी भी हमारे विश्वविद्यालयों में ऊँची पढ़ाई और शोध-कार्य की भाषा अंग्रेज़ी ही है। देश की संसद के कानून अभी भी अंग्रेज़ी में ही बनते हैं। हमारी अदालतों की बहस और फ़ैसले अंग्रेज़ी में ही होते हैं। जब सारे महत्त्वपूर्ण कार्य अंग्रेज़ी में ही चलते रहेंगे तो मातृभाषाओं को कौन पूछेगा? अंग्रेज़ी महारानी और सारी मातृभाषाएं उसकी नौकरानियां बनी रहेंगी। अपने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री श्री ज.प्र. नड्डा और डाॅ. हर्षवर्द्धन ने मुझसे वायदा किया था कि मेडिकल की पढ़ाई वे हिंदी में शुरु करवाएंगे लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया। हां म.प्र. की चौहान सरकार इस मामले में चौहानी दिखा रही है। उसके स्वास्थ्य मंत्री विश्वास नारंग की पहल पर मेडिकल की पाठ्य पुस्तकें अब हिंदी में तैयार हो रही हैं। मैंने और सुदर्शनजी ने अटलबिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय भोपाल में इसी लक्ष्य के लिए बनवाया था लेकिन वह भी फिसड्डी साबित हो गया। जब आप राष्ट्रभाषा हिंदी में यह बुनियादी काम भी शुरु नहीं करवा सके तो अब आपके ‘मन की बात’ सिर्फ़ ‘ज़ुबान की बात’ बनकर रह गई या नहीं? इस काम की आशा मैं डाॅ. मनमोहन सिंह से तो कतई नहीं कर सकता था लेकिन यदि यह काम नरेंद्र मोदी जैसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक नहीं करवा सकता तो कौन करवा सकता है? मोदी को यह भी पता होना चाहिए कि चीनी भाषा (मेंडारिन) चीन में ही सर्वत्र न समझी जाती है और न ही बोली जाती है। चीन के सैंकड़ो गाँवों और शहरों में घूम-घूमकर मैंने यह अनुभव किया है। जबकि भारत ही नहीं, दुनिया के लगभग दर्जन भर देशों में हिंदी बोली और समझी जाती है। हमारे नेता जिस दिन नौकरशाहों के वर्चस्व से मुक्त होंगे, उसी दिन हिंदी को उसका उचित स्थान मिल जाएगा।
28.02.2022
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
संरक्षक, मातृभाषा उन्नयन संस्थान
कौन हैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिन्दी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिन्दी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।