सभी अधिकारों का रक्षक अपना यह गणतंत्र पर्व है,
प्रजातंत्र ही मंत्र हमारा हम सब को इस पर गर्व है।
आज़ादी के दीवानों का स्वप्न सच कर दिखाएँगे,
ऐसे हम स्वाभिमान से गणतंत्र दिवस मनाएँगे।
हर्ष, जोश और उमंग संग मैं मन मन मुस्काई,
ख़ुश मुझे देख कामवाली बाई छुट्टी मांगने आई।
कल सब घर पर होंगे, काम भी होगा ज़्यादा,
बदलता पारा देख उसने, किया आने का वादा।
अगले दिन समय पर काम करने वो आई,
भारी मन उसका पर सब काम निपटाई।
जाते-जाते मैंने उसको गणतंत्र वाली लड्डू थमाई,
वास्तव में पिछले दिन के व्यवहार पर मुझे शर्म थी आई।
उसने पूछा, आज किस बात की छुट्टी सप्ताह के बीच,
तिरंगा क्यों फ़हराया है हर गली मोहल्ले बीच?
मैं गर्व से बोली, ‘आज गणतंत्र दिवस है,
हमारे देश को संविधान आज मिला था।’
मैंने उसे गणतंत्र दिवस से अवगत कराया,
तो उसकी आँखों में एक प्रश्नचिह्न पाया।
वो बोली जानती नहीं इस बारे में,
उम्र मेरी बीती है गरीबी के बाड़े में।
जिसकी भाग्य में दरिद्रता हो,
उसके लिए इसका क्या अर्थ हो?
मेरे लिए यह दिन वैसे ही आम है,
मुझको कहाँ छुट्टी, कहाँ आराम है?
सुनकर उसकी बात मैं तनिक सकपकाई,
देख उसकी आँखें बात मुझे समझ में आई।
‘कल जल्दी आना’, कहकर मैंने सहजता दिखलाई,
जाते-जाते अनेक सारगर्भित विचारों का द्वार खोल गई।
सुष्मिता द्वारकानी माहेश्वरी
अहमदनगर, महाराष्ट्र