लघुकथा – सरकारी आदमी

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फसल कट जाने के बाद आदिवासी मजदूर बेकार हो जाया करते थे। हर वर्ष उस समय शहर से एक ठेकेदार वहां आता था और उन सब को शहर ले जाकर मजदूरी कराया करता था। इस बार फसल कट चुकी थी, पर ठेकेदार नहीं आया था। गांव की उस बस्ती के मजदूर ठेकेदार का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उन सभी के मन में एक ही प्रश्न घूमता रहता….. यदि ठेकेदार नहीं आया तो??
एक दिन दोपहर को बस्ती में शोर मचा कि ठेकेदार आ गया। सभी के चेहरे उत्साह से खिल उठे। मेहनताना तय हुआ और सब ट्रक में चढ़ने लगे। पुराने मजदूर जानते थे कि हमेशा की तरह अंत में ठेकेदार ट्रक में चढ़ेगा और कहेगा…. “ईमानदारी से काम करोगे तो ही रखूंगा नहीं तो भगा दूंगा!अच्छी तरह सुन लो…. यह सरकारी काम नहीं है जहां मक्कारी धक जाए!”
सब मजदूरों के ट्रक में चढ जाने के बाद ठेकेदार ट्रक में चढ़ा और उसने अपना वही पुराना संवाद दोहरा दिया। सभी मजदूरों ने सिर और हाथ हिलाकर उसे आश्वस्त किया कि वह ईमानदारी से कार्य करेंगे और सरकारी आदमी कभी नहीं बनेंगे।
ट्रक शहर की ओर चल पड़ा था।
■■

प्रो (डॉ.) योगेन्द्र नाथ शुक्ल

पूर्व प्राचार्य, निर्भयसिंह पटेल शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, इंदौर।

निवास-390, सुदामा नगर, अन्नपूर्णा मार्ग, इंदौर,452009,
म.प्र

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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