जब-जब पड़ी बूंदे पानी की जमीं पर
यूं लगा सावन की बूंदों ने दस्तक दी हो
मुरझाई सी, अलसाई सी बेलो को, लताओं को
हरितमा के आंचल से ढक दिया बरस कर (१)
गूंजने लगा बारिश की टिमटिमाहट का गुंजन
मेंढकों की टर्र -टर्र और झीगुरों के आहटों से
प्रकृति का मद्धिम कर्णप्रिय संगीत का जादू
झरनों का कलरव देने लगा आमंत्रण पर्यटकों को(२)
भीगने लगे तन बदन ,मन की पीड़ाओं से परे होकर डोलने लगे छाते, रेनकोट, गली-गली, चौराहों पर
मिट्टी से दूषित हो सनने लगे हाथ पैर
चलने लगी नावें नवनिहालों की कागज की घरों के बाहर (३)
करने लगे लुकाछिपी सूरज -चंदा बादलों की ओट में ढलने लगी सुरमई शामें सुनहरी धूप से
बेचैनी से करने लगा मन इंद्रधनुष का इंतजार
घरों की मुंडेरों और छतों पर जाकर (४)
बजने लगे मंदिरों में घंटे ज़ोर ज़ोर से
उठने लगी मंत्रों के जाप गली- गली मोहल्लों में स्थापित होने लगे चतुर्मास देवताओं और गुरुओं के
होने लगी शुद्धि यज्ञ कुंडों के घी -हवन सामग्री से(५)
घरों की चौखटों पर टकटकी लगाकर बाट जोहति
बिरहनो की खातिर होने लगी वापसी परदेसियों की
मेहंदी,महावर की लालिमा से सजने लगे हाथ-पैर
भाइयों की कलाई करने लगी बहनों की राखी का इंतजार (६)
यूं लगने लगा सावन की बूंदों ने प्रकृति संग जैसे हर जीव को अपने संपूर्ण वरदान से आर्शीवादित कर दिया गर्मी के अभिशाप से मुक्त कर दिया हो
जीवन की संपूर्णता का एहसास कराने आया सावन झूूूम के(७)
स्मिता जैन