हल किसान का नहिं रुके, मौसम का जो रूप हो।
आँधी हो तूफान हो, चाहे पड़ती धूप हो।।
भाग्य कृषक का है टिका, कर्जा मौसम पर सदा।
जीवन भर ही वो रहे, भार तले इनके लदा।।
बहा स्वेद को रात दिन, घोर परिश्रम वो करे।
फाके में खुद रह सदा, पेट कृषक जग का भरे।।
लोगों को जो अन्न दे, वही भूख से ग्रस्त है।
करे आत्महत्या कृषक, हिम्मत उसकी पस्त है।।
रहे कृषक खुशहाल जब, करे देश उन्नति तभी।
है किसान तुमको ‘नमन’, ऋणी तुम्हारे हैं सभी।।
उल्लाला छंद विधान –
उल्लाला द्वि पदी मात्रिक छन्द है। स्वतंत्र रूप से यह छंद कम प्रचलन में है, परन्तु छप्पय के 6 पदों में प्रथम 4 पद रोला छंद के तथा अंतिम 2 पद उल्लाला के होते हैं। इसके दो रूप प्रचलित हैं।
(1) 26 मात्रिक पद जिसके चरण 13-13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। इसका मात्रा विभाजन: अठकल + त्रिकल(21) + द्विकल है। अंत में एक गुरु या 2 लघु का विधान है। इस प्रकार दोहा के चार विषम चरणों से उल्लाला छन्द बनता है। इस छंद में 11वीं मात्रा लघु ही होती है।
(2) 28 मात्रिक पद जिसके चरण 15 -13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। इस में शुरू में द्विकल (2 या 11) जोड़ा जाता है, बाकी सब कुछ प्रथम रूप की तरह ही है। तथापि 13-13 मात्राओं वाला छन्द ही विशेष प्रचलन में है। 15 मात्राओं वाले उल्लाला छन्द में 13 वीं मात्रा लघु होती है।
तुकांतता के दो रूप प्रचलित हैं।
(1)सम+सम चरणों की तुकांतता।
(2)दूसरा हर पंक्ति में विषम+सम चरण की तुकांतता। शेष नियम दोहा के समान हैं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया