आओ, मिलकर विश्वास की अलख जगाएं

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आओ, मिलकर विश्वास की एक नई अलख जगाएं
जो छूट रूठ गए हैं उन्हें एक धागे में फिर से पिरोएं
ना कोई दुखी हो ना कोई भी रोने पाए
आओ, मिलकर एक नए भोर का गीत गाएं

चारों दिशाओं में है मौत का तांडव मचा
ऐसे खूंखार कोरोना से कोई भी देश ना बचा
लाशों के ढेर से ना कोई कब्रगाह ना ही कोई घाट बचा
आओ मिलकर के ऐसे अंधकार में नई उम्मीद की किरण जगाएं

काले घने निराशाओं के बादल चहुँ ओर उमड़ रहें
विपदा ही विपदा सघन हर दिशा में घुमड़ रहें
अनगिनत इंसान की सांसे मौत फास में जकड़ रहें
आओ मिलकर के हाथों को थाम काले मेघ को काटे

असंख्य बेबस आँखें रोशनी को तलाश रहीं
हर दिशाएं मौत और बेबसी का चित्कार कर रहीं
हर इंसान के सपने धू – धू करके जल रहें
आओ मिलकर के इस विपदा को हरने का हरि से पुकार करें

काल विकराल मुँह बाये सामने खड़ी है
आज हर एक एक के हौंसले के इन्तहा की घड़ी है
रणबांकुरे ने इससे पहले अनगिनत लड़ाइयां लड़ी है
आओ मिलकर के इस बार स्वास्थ्य योद्धाओं के साथ अदृश्य दुश्मन को हराएं

ये मौत का अंधकार कब तक कदमों को रोक पाएगा
ये इंसान को खत्म कर कब तक उसके हौसलों को रोक पाएगा
आखिर कब तक यह काल जीवन को संचरित ना होने देगा
आओ मिलकर के मृत तिमिर को नाश करने का प्रण लेते हैं

आओ मिलकर के नए विश्वास का अलख जगाते हैं

अखिलेश कुमार बिन्द
टेंगा वैली अरुणाचल प्रदेश।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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