अभिलाषाओं को अभिव्यक्त करती ,
भावनाओं को चित्रित करती ,
कल्पनाओं के सिंधु में अनुपम अलंकृत होती ,
वह है अतुल्य अनुपम हिंदी ।
मां वाग्मयी के आशीर्वाद की तरंगिणी ,
काव्य का आलौकिक अल्हाद ,अनुभूति का सृजन ,
वर्ण से अक्षर तक नवल गीत अनंत रंगीनी ,
कभी चारु चंद्र की चंचल किरणें में रितु गान करती ।
कभी नूपुर की झंकार सी ,कभी वेणु के सुरों से किसी सुमुखी के प्रेम को सुरभीत करती ।
कभी नगाड़ा और दुंदुभी सी किसी युद्धवीर का उत्साह बढ़ाती ,
मधुर -करुण संवेदनाओं की तरंगिणी ।
वह है अतुल्य अनुपम हिंदी ।
कभी हास्य के स्वर से मुखरित होती ,
कभी नैराश्य का भाव तो कभी जुगुप्सा ,आश्चर्य की तिरोहिणी।
अलंकारों के कौस्तुभ का अवलंबन करती ,
वह है अतुल्य अनुपम हिंदी ।
मीरा के छंदों से कबीर की वाणी में,
प्रेमचंद से निराला की मुखरित होती लेखनी में एक सूत्र होती, संस्कृति व सृजन की उद्घाटीनी ।
वह है अतुल्य अनुपम हिंदी ।
विभाव ,अनुभाव, संचारी – स्थाई भाव की निष्पादिनी ,
वर्ण से अक्षर तक नवल गीत अनंत रंगीनी ,
परस्पर प्रेम का सेतु बनाती।
ओंकार के नाद से ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश से एकाकार करती ,
सकल भारत राष्ट्र की महिमामंडिनी ।
मां वांग्मयी के आशीर्वाद की तरंगिणी ।
वर्ण से अक्षर तक नवल गीत अनंत रंगीनी।
वह है अतुल्य, अनुपम हिंदी।
नीना शर्मा, मुम्बई