अरुणाचल प्रदेश की निशि जनजाति है उत्सवधर्मी : सावन

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अरुणाचल की भूमि पर, निशि- न्योकुम त्यौहार।नाचे गाए दाफला, करि सोलह श्रृंगार।।

निशि अरुणाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण जनजाति है जो अपने साहस और वीरता के लिए जानी जाती है । अरुणाचल के लोअर सुबनसीरी, अपर सुबनसीरी, पापुम पारे और ईस्ट कामेंग जिलों में इनका निवास है। पूर्वी कामेंग जिले के निशि को बेंगनी, लोअर सुबनसीरी जिले के निशि को निशांग तथा पापुमपारे जिले के निशि को निश पुकारा जाता है। पहले इनको ‘दाफ़ला’ कहा जाता था, परंतु सन् 2008 से इनको न्यिशी या निशि के नाम से संबोधित किया जाता है। नि + शिंग के योग से बना ‘निशिंग’ का शाब्दिक अर्थ है- मनुष्य । ये लोग मिथकीय पुरुष आबो तानी को अपना पूर्वज मानते हैं। निशिंग के अतिरिक्त आदी,आपातानी, हिल मीरी और तागीन जनजातियां भी आबो तानी को अपना पूर्वज मानती हैं। निशिंग लोग बहादुर और ईमानदार होते हैं। अपनी संस्कृति तथा परंपराओं के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले निशिंग लोगों में भाईचारे की भावना प्रबल होती है। इनके पास अपनी संस्कृति, भाषा, धर्म और परंपरा है। इनका शरीर सुगठित, रंग गोरा और नाक चपटी होती है। यह जनजाति पहले बांस और घास- फूस से बने हुए मचाननुमा मकान में निवास करती थी लेकिन अब पक्का मकान में सुखद जीवन जीती है। न्योकुम त्यौहार में रिखमपाड़ा नामक सामूहिक नृत्य होता है जिसे देखकर मन मयूर सा झूम उठता है। संस्कृति, धर्म और भाषा की दृष्टि से अरुणाचल की आदी एवं हिल मीरी जनजातियों से इनकी समानता है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय में निशिंग लोग असम के राजा भगदत्त के सैनिक थे एवं युद्ध में इन लोगों ने अपने अद्भुत साहस और युद्ध कौशल का परिचय दिया था। इस जनजाति के लोग कान में बाली और सिर पर टोपी धारण करते हैं। ऐसा विश्वास है कि निशिंग लोग ‘आबो तानी’ के प्रथम वंशज हैं। ऐसी भी मान्यता है कि एक समय निशिंग और बाघ दोनों भाई थे, परंतु उनके रूप-रंग और स्वभाव में समानता नहीं थी। कालांतर में बड़ा भाई बाघ में रूपांतरित हो गया और छोटा भाई मनुष्य हो गया। बाद में दोनों भाइयों में कुछ गलतफहमी हो गयी I इसलिए दोनों अलग -अलग रहने लगे तथा एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए । निशिंग लोगों के मूल निवास और देशांतरगमन के संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है क्योंकि इनके पास कोई साहित्य अथवा कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। निशि जनजाति की भाषाएं न्यिशी, निसि, निशिंग तथा निशि और उपभाषाएं अकलेल, बंगनी और निशांग हैं।
    इनके इतिहास के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें पौराणिक आख्यानों, लोकगीतों और लोककथाओं का सहारा लेना पड़ता है। इनके मूल निवास और देशांतरगमन से संबंधित अनेक आख्यान प्रचलित हैं जिनमें से एक सर्वाधिक प्रचलित आख्यान के अनुसार इनका मूल निवास स्थान ‘सुपुंग’ था जो पूर्वी हिमालय क्षेत्र में किसी स्थान पर स्थित था। बाद में वे लोग नारबा नामक स्थान पर आकर रहने लगे। तदनंतर यथाक्रम से बेगी,बोलो और यालंग नामक अनेक गाँव को छोडकर तथा सुबनसीरी नदी को पारकर आगे बढ़ गए। इसके बाद उन्होने कुम्मे अथवा कमला नदी को पार किया तथा कमला एवं खो नदियों के मध्य में स्थित संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में फैल गए। निशि लोग अपनी वंशावली इस प्रकार देते हैं – आबो तानी का पुत्र आतु न्या > आतु न्या का पुत्र हेरिन > हेरिन का पुत्र रिंगदो > रिंगदो के तीन पुत्र हुए > दोदुम, दोल एवं दोपुम। ये तीनों इसी नाम के तीन उपवर्ग के पूर्वज माने जाते हैं। Iनिशिंग समुदाय के लोग बहुत धार्मिक होते हैं । परंपरागत रीति से विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा कर निशिंग लोग अपनी धार्मिकता प्रकट करते हैं। धूमधाम से न्योकुम नामक त्यौहार मनाते हैं-
न्योकुम में गूंजै गगन , जीवन- उत्सव गान। गुनगुनाए धुन पर गुण, सुन सावन- मन ध्यान।।
 देवताओं को पशुओं की बलि देना इनके धर्म का अविभाज्य अंग है। इनके सभी संस्कार पुजारी कराते हैं जिसे ‘न्यीबु’ कहा जाता है। उसकी सहायता के लिए एक या एक से अधिक सहायक पुजारी होते हैं जिन्हें ‘न्यीजक’ कहा जाता है। दोन्यी-पोलो में इनकी अटूट आस्था है। इसके अतिरिक्त आकस्मिक मृत्यु के देवता (सोन्यी उई), समृद्धि की देवी (अमपीर उई), धन की देवी (चितोम बोत उई), विकास के देवता (यूल्ला) इत्यादि की भी पूजा-आराधना की जाती है। जंगल के मुख्य देवता हैं – ‘दोजींग’ और ‘यापोम’। ये देवी-देवता सूअर, मिथुन और मुर्गी की बलि से प्रसन्न होते हैं तथा मनोनुकूल फल देते हैं। ‘अने-दोन्यी’ (माता सूर्य) निशि समाज की सर्वोच्च माँ हैं। वे अन्न देती हैं तथा धान्यागार को भरा रखती हैं। वह संतान देती है और उन्हें निरोग रखती हैं। उनकी दया के बिना कोई भी मानव कुछ नहीं कर सकता है। वे ही मनुष्य की संपन्नता -विपन्नता का निर्धारण करती हैं। उन्हें मिथुन की बलि दी जाती है और सभी अवसरों पर उन्हीं की आराधना की जाती है। अरुणाचल की प्रायः सभी जनजातियाँ अलौकिक शक्तियों में विश्वास करती हैं। निशिंग समाज इन अलौकिक शक्तियों को ‘वीयू’ अथवा ‘उई’ के नाम से जानता है। इनका विश्वास है कि पृथ्वी और आकाश की जबसे उत्पत्ति हुई तबसे ही ‘उई’ का अस्तित्व है। यह संसार उई से भरा हुआ है। उई दो प्रकार के होते हैं – कल्याणकारी और विनाशकारी। विनाशकारी उई मानव को कष्ट पहुँचाते हैं, बीमार करते हैं, मारते हैं तथा दुख-दारिद्र्य देते हैं। यथासमय मिथुन, सूअर, मुर्गी इत्यादि पशुओं की बलि देने से ये देवतागण प्रसन्न रहते हैं और मनुष्य की रक्षा करते हैं। ‘सोतु-उई’ सबसे खतरनाक उई है। इन देवी-देवताओं के अतिरिक्त भी निशि समाज अन्य असंख्य देवी-देवताओं के अस्तित्व में विश्वास करता है। घर और घर के बाहर भी असंख्य देवी-देवताओं का निवास है। फसलों के देवता, पशुओं के देवता, जंगल एवं पर्वत के देवी-देवता सभी मानव के कार्यों पर नज़र रखते हैं। ये देवता पशुओं की बलि पाकर खुश होते हैं और मनोवांछित फल देते हैं।निशि जनजाति के लोग अपने सिर पर परंपरागत टोपी पहनते हैं जिसमें मोर के पंख चमचमाते हैं- 
धर्म-कर्म रम नशा निशि, सिर पर मयूर-पंख।’सावन’ पावन मन-भुवन, ज्यों पूजन सुख शंख।।
      इस जनजाति में प्रेम विवाह का प्रचलन है। शादी का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से  जाता है। दहेज में मिथुन, गहना इत्यादि सामग्रियां वधू पक्ष को मिलता है। कहीं-कहीं बहु विवाह के भी दर्शन होते हैं। बांस से निर्मित वस्तुओं एवं घरों के सहारे जिंदगी कटती है।   गांव की समस्याओं का समाधान गांव बूढ़ा (ग्राम प्रधान) करते हैं। वर्तमान में उच्च स्तरीय पदों पर भी इस जनजाति के लोग अपनी सेवाएं प्रदान कर देश की सेवा कर रहे हैं। आप सब सभ्य, सबल  एवं संपन्न भी हैं-
जनजाति बबुआन लगें, सबल, सभ्य, संपन्न।ज्यों बाभन, रवि- सोम सम, तन- मन रहत प्रसन्न।।

सुनील चौरसिया ‘सावन’
टेंगा वैली, अरुणाचल प्रदेश।

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