युद्ध लड़ रही हैं लड़कियां

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कोख में आने से जन्मने तक
जन्मने से मर जाने तक
युद्ध लड़ रही है लड़कियां

हालांकि वे
नही लड़नी चाहती कोई युद्व
उन्हें नही जीतने गढ़
नही जीतने निजाम
नही ही जीतने इंद्रप्रस्थ,
वे नही लड़ना चाहती कोई कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र हैं कि थोप दिए गए हैं उनपर
लाद दिये गए हैं

वे बिना गांडीव, बिना रथ, बिना कवच, बिना सारथी
कुरुक्षेत्र में हैं हर समय
बिना किसी लक्ष्य
बिना किसी लोभ
वे युद्धक्षेत्र में हैं
कि सांस ले सकें दो पल
देख सकें आकाश
जी ही सकें
कि कोई जीने दे उन्हे
जीने जैसा,
वे निरन्तर लड़ रही हैं
थोपे हुए युद्ध

रहा होगा ये नियम किन्ही समयों में
कि निषिद्ध है रात में युद्ध लड़ना,
लड़कियों के लिए मगर
हर समय युद्ध है
हर काल युद्ध है
पल युद्ध है, पहर युद्ध है,
दिन युद्ध है,
और रात बड़ा युद्ध है
बड़े खतरे आसन्न हैं रात की चुप्पी में

युद्ध लड़ रही हैं लडकियां
बिना गीता के
बिना कृष्ण के
और द्वंद्व हैं कि पस्त किये जाते हैं उन्हे,
युद्धों के द्वंद्व से बड़े है
स्त्री के द्वंद्व
अर्जुन से बड़े हैं
द्रोपदियों के द्वंद्व
वे पुकारती हैं कान्हा को
कि स्त्री युद्धों के संदर्भ में भी
कोई तो गीता कही होती
द्रोपदी को ही सुनाते कोई गीता ज्ञान
कि युद्ध लड़ो द्रोपदी
पहचानो स्वजन, परिजन और दुर्जन
तुम देह नही हो द्रोपदी

हद है ना कान्हा
जिस मुल्क में पग पग बैठे हैं व्याख्याता
यह बताते हुए
कि मनुष्य देह नही आत्मा है
उस मुल्क की मति पर देह का लावण्य हावी है
और साँसों से सड़ांध रिस रही है

हद है ना कान्हा
कि गीता वाले तुम्हारे इस मुल्क में
लड़की को देह बचाने के लिए
युद्ध लड़ने पड़ते हैं

मारूति शुक्ला,
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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