‘‘जवान तुम्हारी माताजी ……….का निधन हो गया है, तुम फील्ड से वापिस आ जाओ…………….’’
वायरलेस पर आयी इस सूचना ने सचिन को थोड़ी देर के लिए स्तब्ध कर दिया । तभी सामने से आई एक गोली उसके सामने रखी रेत कीे बोरी में घुस गई । सचिन चैक गया उसने गोलियां बरसाना शुरू कर दिया । वायरलेस पर यह मेसेज फिर गूंजा । सचिन ने दुश्मनों पर निशान साधते हुए ही जबाब दिया ‘‘अभी में डूयटी पर हूॅ सर……..सामने से दुश्मनों की गोलियां चल रही है………ऐसे हालात में मैं फील्ड से वापिस नहीं आ सकता सर’’
माॅ की मौत के समाचार ने सचिन को झकझोर दिया था । कुछ पहिले ही उसे माॅ के बीमार होने का समाचार मिला था । वह अवकाश का आवेदन लेकर अपने सीनियर के पास गया भी था
‘‘सर मेरी माॅ बीमार हैं……….मुझे कुछ दिनों का अवकाश चाहिये’’
‘‘जवान तुम जानते हो…….बार्डर पर हालात खराब हैं, दुश्मनों के साथ युद्ध के हालात बने हुए हैं……..ऐसे में भी क्या वाकई तुम अवकाश पर जाना चाहोगे’’
‘‘नो……………सर’’ कह कर सैल्यूट मारकर वह आ गया था ।
उसकी ड्यूटी सीमा की बार्डर पर लगी थी जहां लगातार बर्फ गिर रही थी । ऐसे समय में ही उस पार के दुश्मन देश के सैनिक चैकियों पर हमला कर घुसपैठ की कोशिश करते हैें । दुश्मन देश के बहुत सारे सैनिक अपनी सीमा में प्रवेश भी कर चुके थे जिन्हें सीमा के बाहर खदेड़ा जा रहा था । सचिन पिछले चैबीस घंटे से लगातार गोलियां बरसा रहा था । उसकी आग उगलती बंदूक की चपेट में आकर जाने कितने दुश्मन सैनिक मारे जा चुके थे । उनके विंग कमांडर ने स्वंय सचिन की पीठ थपथपाकर शाबासी दी थी ।
‘‘माॅ नहीं रहीं’’ सचिन के कानों पर अब भी हेडक्वाटर का संदेश गूंज रहा था । उसके सामने माॅ के चेहरा उभर आया । माॅ के चेहरे के ऊपर भारत माता की तस्वीर उभर आई । वह बचपन में भी ऐसा ही करता था । पूरे भारत का नक्शा बनाता और उसके बीच में अपनी माॅ का चेहरा एक गोलमटोल सा चेहरा प्यारा सा चेहरा जिसके हाथों में चूड़ियां होती मानो वे खनक रही हों ।
‘‘माॅ आ रही है’’ वह बोलता ‘‘नहीं……….भौजी की चूड़ी का आवाज है’’
‘‘हो ही नहीं सकती…….मेरी माॅ की चूडियों की आवाज में एक धुन है मानो उनकी चूड़ियां ही खनक कर गा रही हो……वंदेमातरम्!……..’’
और सचमुच में माॅ ही आती ‘‘क्या कर रहे हैं मेरे लाल…..’’ कहते-कहते वे मुझे गोद में उठा लेती ‘माॅ…..’’ सचिन चिपक जाता माॅ की छाती से । माॅ छिड़क देती ‘‘अब तू बडा़ हो गया है रे……अब क्यों माॅ की छाती तोड़ने का प्रयास कर रहा है…….’’ कहते-कहते माॅ जोर से दबोच लेतीं अपनी बांहों में ।
माॅ बहुत सुन्दर थी । गोल चेहरा लम्बे बाल, लंबी कलाईयां और उनमें ढेर सारी रंगबिरंगी चूड़ियां, पैरों में मोटी पायल जिनमें घुंघरू लगे हुए थे, दूधिया रंग वे सदैव सीधा पल्ला लेती और उनका सिर हमेशा ढंका रहता था। माॅ जब खुले बालों और माथे पर बड़ी लाल बिन्दी, पीली साड़ी के सीधे पल्ले में सिर ढंके निकलती तो मुझे लगता मानो भारत माता आ रही हों । मैं एकटक देखता रहता था उन्हें ‘‘ऐसे क्या देख रहा है बन्दर’’
‘‘भारत माता को …….मैंने उन्हें कभी देखा नहीं है……पर शायद ऐसी ही दिखती होगंी ।’’ मैं माॅ से लिपट जाता ।
पर माॅ का यह सुन्दर चेहरा हमेशा नहीं बना रहा । पिताजी की मौत के बाद माॅ के माथे की बिन्दी, हाथों की चूड़ियां और पैरों की पायल गायब हो गई । माॅ सस्ती वाली सफेद साड़ी पहनने लगीं थीं
‘‘माॅ आप तो सफेद साड़ी में भी बहुत सुन्दर नजर आती हो’’ माॅ उदास हो जाती । माॅ कहीं काम करने जाने लगी थीं । पहले पिताजी थे तो वेतन घर आ जाता । पिताजी सारा पैसा लाकर माॅ के हाथों में रखते
‘‘अरे! ये लो भागवान………अब हमारा और हमारे बच्चों का भाग्य बनाओ’’ पिताजी माॅ को शायद छेड़ते थे ं माॅ तुनक जाती
‘‘इतने से पैसों से मैं बाप-बेटों का भाग्य भला कैसे बना सकती हूॅ ’’
‘‘अरे तुम तो लक्ष्मी हो……….हमारे घर की……….पैसों में हाथ लगताी हो तो बरकत आ जाती है……..’’ कह कर पिताजी हाथ-पैर धोने चले जाते और माॅ पैसों को लेकर भगवानजी के चरणों में रख देतीं । बहुत देर तक पैसे वहीं रखे रहते मानो भगवान जी घर की जरूरतों का हिसाब लगाकर उसमें धन की बढ़ोत्तरी कर रहे हों और सच में धन में अनायास वृद्धि हो जाती । माॅ पूरे महिने भर पैसा खर्च करती रहती । हर एक की जरूरतें पूरी करती रहती, पिताजी भी रोज आफिस जाने के पहले माॅ से ही पैसे माॅगते ।
पिताजी की आकस्मिक निधन हो गया । माॅ देर तक रोती रहीं थीं उनकी अर्थी के पास । फिर मुझे जोर से अपने अंक में भर लिया था । ,सचिन को एक आग से भरी हांडी हाथ में दे दी गई थी और मेरे मामा मुझे पकेड़े पकड़े अर्थी के आगे-आगे चल रहे थे । अर्थी को जब लोग ले जाने लगे थे तब मेरी माॅ बेहाश हो गई थीं । जब होश आया तो उन्होने मेरे सिर पर हाथ फेरा था ‘‘ मैं हूॅ………….न……..आज से ही ……..मैं तेरी ……पिता भी हॅू’’
सचिन को जीवन में कभी पिता के न होने का अहसास नहीं होने दिया हांलाकि मैं कई बार मैं भी चुपके-चुपके रो लिया करता था ।
अब जब सचिन स्कूल से घर आता तो माॅ मुझे घर पर नहीं मिलतीं थी । एक थाली ढंकी होती जिसमें खाना होता था । मैं हाथ धोकर खाना खा लेता और माॅ के लौटने की राह देखता रहता । माॅ दियाबत्ती तक लौट पाती थीं तब तक मैं अकेला रहा आता । आते ही माॅ मुझे अपने अंक में भर लेती । फिर मेरे कपड़े बदलती और कपड़ों को धोती भी । सचिन केे पास एक ही जोड़ी अच्छे वाले कपड़े थे । कपड़े धोने के बाद माॅ मेरा होमवर्क कराती और फिर खाना बनाने लगती । जल्दी-जल्दी खाना बनाकर मुझे खाना खिलाकर सुला देती और वे काम करतीं रहती । सचिन कभी नहीं जान पाया कि माॅ कब सोती हैं और कब जाग जाती हेंै ।
वैसे तो सचिन बाहर पढ़ने नहीं जाना चाहता था । वह बड़ा हो गया था इस कारण माॅ की परेशानियों को समझने लगा था । माॅ अकेली रह जायेगी और फिर बाहर पढ़ने जाने से खर्चा भी बढ़ जायेगा माॅ कैसे इसे पूरा करेगी । उसनेे माॅ को साफ बोल दिया था । पर माॅ मानने को तैयार नहीं थी
‘‘यहां रह कर ढोर चरायेगा क्या………देख तेरे साथ पढ़ने वाले सभी तो जा रहे हैं तू क्यों नहीं जायेगा………बगैर पढ़ा रहेगा तो मेरा हाथ कैसे बटायेगा…..’’
‘‘नही………….मैंने कह दिया न……………मैं नहीं…..जाऊंगा तो नहीं………..जाऊंगा ’’
‘‘मेरा राजा बेटा………देख मेरा तेरे सिवाय और है ही कौन…….तू ……पढ़ लिख जायेगा तो मेरा सहारा हो जायेगा……’’ वे मुझे समझाती । आखिर में झुझंला पडत़ी ‘‘ तो क्या मैं………सारी जिन्दगी तुझे ऐसे ही काम कर के खिलाती रहूं….तू जानता है क्या कि मैं कितनी परेषान होती हॅू दिन भर…..तब दो पैसे हाथ में आते हैं……..और कितने दिन………मैं मेहनत-मजदूरी करती रहूॅगी..’’ वे रो पड़ी । मैंने उनके आूंसू पौछे. ‘‘ठीक है…………अगर तुम्हारी ……यही जिद्द है तो चला जाऊंगा……….पर तुम रह पाओगी अकेले……..फिर मेरा खर्चा भी बढ़ेगा.’
‘‘तू जा ..तो मैं रह भी लूंगीं और तेरा खर्चा भी उठा लूंगीं’….वे प्रसन्न हो गई ।
जवान अब तुमको दुश्मन की चैकी पर कब्जा करने आगे बढ़ना है’’ मेजर का आदेश उसके कानों में पहुंच चुका था । उसने अपनी बंदूक को रोक लिया और अपने आपको आगे बढ़ने के लिए तैयार करने लगा था ।
‘‘सबसे आगे सचिन रहेगा……बाकी जवान उसको कवर करते चलेगें…….कोई शक’’ मेजर का आदेश पाते ही सचिन चीता सी फुर्ती के साथ खड़ा हो गया । उसके साथ चार और जवान थे वे सचिन के पीछे हो गये । सचिन सावधानी और चैकस निगाहों से चारों ओर देखते हुए आगे बढ़ रहा था । लक्ष्य उसके सामने थे । चारांे ओर निस्तब्धता छा चुकी थी ।
दुश्मन की चैकी को चारों ओर से घेर लिया था । इंतजार था कमांडर के अगले आदेश का । सचिन बेताब था कि कब आदेश हो और वह आगे बढ़कर दुश्मन की चैकी पर कब्जा कर ले । ऐसा ही बेताब वो तब भी था जब वह अपनी पढ़ाई कर घर लौटा था । लंबा-चैड़ा हट्टा-कट्टा । माॅ उसे देखती रहीं थीं बहुत देर तक । माॅ बूढ़ी हो गई थी । उनके काले बाल अब चांदी के बालों की शक्ल ले चुके थे । माॅ ने बचपन में कहानी सुनाई थी ‘‘चांदी के बालों वाली बूढ़ी अम्मा’’ की । माॅ अब अम्मा बन चुकी थी । चेहरे पर झुर्रियां आ गई थीं । दाॅत टूट चुके थे शायद इसलिए गाल चिपक गए थे । माॅ ने कांपते हाथों से मेरे सिर पर हाथ फेरा था ।
‘‘अरे ! माॅ आप तो बिल्कुल बूढ़ी हो गई हो….’’ मैने माॅ को हाथों में उठा लिया था । सचिन जानता था कि माॅ की उम्र अभी बूढ़े होने लायक नहीं हुई थी पर मेहनत और संघर्षो ने उसे उम्र के पहले बूढ़ा कर दिया था । रात को माॅ ने उसकी नजर उतारी थी ।
‘‘माॅ मैं सेना में भर्ती होने जा रहा हूॅ’’ सचिन ने दूसरे दिन माॅ को बताया था । माॅ कुछ नहीं बोली । वह दिनभर मौन ही रही आई । रात को उजियारें के लिए दीपक जलाती हुई माॅ ने बोला था
‘‘तुझे सेना में जरूर जाना चाहिये…………आखिर देश के लिए भी तो कुछ कर्तव्य है कि नहीं……’’
‘‘तुझे याद ….है माॅ……मैं बचपन में आपको देखकर भारत माॅ की जय बोला करता था ………..आप लगती भी तो ठीक वैसी ही थीं ’’
‘‘हाॅ……..मैं समझ गई तूने बचपन में ही तय कर लिया था कि तू सेना में जायेगा……इसलिए ही तो तेरा शरीर भी अभावों में रहने के बाद भी गठीला बना ..यह भारत माता की कृपा ही है……’’ माॅ चुप हो गई थी । मैं जानता था कि माॅ के दिलो दिमाग में एक संघर्ष चल रहा है । उसने जिस लाड़-प्यार से मुझे पाला था शायद यह सोचकर कि मैं उसके बुढ़ापे की लाठी बनूंगा पर मैं तो सेना में जा रहा था ………..एक अलग जीवन जीने । माॅ अपने संघर्ष में उलझी रहीं थीं बहुत देर तक नहीं बल्कि बहुत दिनों तक पर उन्होने मुझे सेना में जाने से रोकने का कोई प्रयास नहीं किया था । जाते समय माॅ ने उसका माथा चूमा और ‘‘भारत माता की जय’’ का उद्घोष किया ।
सेना में अपनी ट्रेनिंग खत्म कर सचिन माॅ के पास आया था एक दिन के लिए । उसकी पोस्टिंग सीमा पर हुई थी । मेरे ट्रेनर कहते थे
‘‘सचिन तुम में बहुत ललक है और तुम बहुत बहादुर भी हो इस कारण तुम्हें इतनी जल्दी इतनी अच्छी जगह पोस्टिग दी जा रही है, तुूम बहुत किस्मत वाले हो वरना सैनिको को तो वर्षो लग जाते हैं ऐसी पोस्टिंग के लिए ’’ । सचिन ने उत्साह में जोर से सेल्यूट दिया था उन्हें ।
माॅ के गले लगकर अपनी ट्रेनिंग की सारी थकान भूल गया था सचिन ।
‘‘माॅ अब मेहनत करने की जरूरत नहीं है………….आप आराम किया करो…….मैं पैसे भेजता रहूॅगा…….आप सारे कर्ज भी उतार देना और आराम से भी रहना ’’ मेैने माॅ के चांदी जैसे बालों के साथ खेलते हुए बोला था । माॅ के हाथ खाली थे । मुझे ध्यान है कि माॅ अपनंे हाथों में एक सोने की चूड़ी हमेशा डाले रहती थीं ‘तेरे पिताजी ने शादी के समय दी थी’’ कहकर माॅ यादों में डूब जाती थीं ।
‘‘माॅ तेरे हाथ की चूड़ी कहां गई’’ मैं अपनी उत्सुकेता को दबा नहीं पाया था । पर माॅ चुप रहीं । इस बार सचिन ने माॅ को कुछ ज्यादा ही खामोश पाया था । दिन भर में माॅ ने कुछ ज्यादा बोला नहीं था वह एकटक मुझे देखती रहती और नजर मिलते ही यहां-वहां देखने लगती ।
सचिन शाम को ही वापिस हो गया था । आते समय माॅ को बोला था
‘‘माॅ अब आप मेरी बिल्कुल चिन्ता मत करना…..मैं भारत माता की सेवा करने जा रहा हॅू और हाॅ अपनी खबर मुझे देती रहना….स्वस्थ्य रहना……मैं जब दोबारा आऊंगा न …..तो आप बिल्कुल पहले जैसी मिलना……..’ ।
‘‘हाॅ……….रे अब इस उम्र में…..’’ माॅ ने लाड़ से झिड़क दिया था
‘‘अरे अभी आपकी उम्र ही क्या हुई है अभी तो आप जवान हैं’’
मैंने माॅ को बांहों में भर लिया था । सचिन की आॅखों से अनायास ही आंसू बह निकले थे । माॅ भी अपने आपको रोक नहीं पाई थी । उसके आॅसू शायद बहुत दिनों से अपनी सीमा तोड़ने बेताब थे उन्हें आज इसका अवसर मिला था । मैं बहुत देर तक माॅ को अपनी बांहों में लिए रोता रहा था और माॅ के आंसू मेरी वर्दी को गीला करते रहे थे ।
मेजर का आदेश मिलते ही जवान धीरे-धीरे कदमों से लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे । सचिन ने अपने बूटों से चैकी के दरवाजे को ठोकर मारी । दरवाजा एक ही झटके में टूट गया था । अंधाधुध फायरिंग करते हुए सचिन चैकी के अंदर दाखिल हो गया । उसको कवर करने वाले बाकी सैनिक अभी दरवाजे तक नहीं पहुंच पाये थे । एक गोली चलने की आवाज से सामंजस्य बिठाती सचिन की चीख को गूंजते हुए उसके साथी सैनिको ने सुना था । वे अंदर दाखिल हों इसके पहले ही सचिन ने ताबतोड़ फायर करना शुरू कर दिये थे । एक एक कर दुष्मन के सैनिक धराशायी होते चले गए । सचिन ने घिसटते हुए सारी चैकी का चक्कर लगाया और फिर दरवाजे पर आकर उसने पूरी ताकत से ‘‘भारत माता की जय’’ का उद्घोष किया । साथी जवान समझ चुके थे कि दुश्मन की इस महत्वपूर्ण चैकी पर अब भारत का कब्जा है । उन्होने घायल सचिन को कांधे पर उठा लिया । सचिन अपने होश खोता जा रहा था । उसके शरीर से लगातार खून बह रहा था ।
‘‘सर…मुझे…अस्पताल नहीं…….मेरी माॅ के शव के पास ले चलो’’ ।
सचिन को घायलवास्था में माॅं के निर्जीव शव के पास लिटा दिया गया था । सचिन ने बहुत मुश्किल से आंख खोली । उसकी माॅ का शव उसके पास ही रखा था । उसने माॅ के हाथ को अपने हाथ में ले लिया
‘‘भारत माता की जय’’ का उद्घोष किया । सचिन की पलकें बंद हो चुकी थीं । माॅ के हाथों को अपने हाथ में लिए सचिन ने आखिरी विदाई ले ली थी । वातावरण में खामोशी छा गई थी ।
भारत माता की जय’’ के उद्घोष से सारा परिसर गूज रहा था ।
कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर म.प्र.