कब तक घुट घुट जियेगी नारी?
कब तक आजादी को तरसेगी?
कब तक आंसू के घूंट पीयेगी?
कब तक खुशियों को तरसेगी?
कब तक सबकी खुशी की खाति,
गला अपनी खुशियों का घोंटेगी?
कब तक सबके मान की खातिर,
हरपल अपने सम्मान को बेचेगी?
लेती जन्म जिस घर मे नारी,
क्यों धन पराया कहलाती है?
ब्याही जाए जिस घर में नारी,
उस घर में भी पराई कहलाती है
लोक लाज की खातिर कब तक,
नारी अपने सपनों को तोड़ेगी।
कब तक द्रोपदी सीता बनकर ,
नारी हरपल अत्याचार सहेगी।
सोने चाँदी के मोल में कब तक,
ये दुनियाँ हरपल नारी को तोलेगी।
सब्र का बांध यदि टूटा नारी का,
अपनी ज़ुबान का ताला खोलेगी।
क्यों ना है कोई नारी का ठिकाना,
जाने कब तक बेचारी यूँ भटकेगी?
है जग में ना है कोई उसका अपना,
ना जाने किसको अपना बेलेगी।
कब तक होगा शोषण नारी का?
ये किस्मत की मारी मौन रहेगी।
कभी तो टूटेगा बांध धैर्य नारी का,
कभी तो ज्वाला बनकर दहकेगी।।
घर की बेटी और बहना बनकर ,
कब तक घर की लाज रखेगी?
आज़ाद परिंदा बनकर कब नारी,
गगन में निर्भयता से सैर करेगी?
अपने सपने सब पूरे करने के,
नारी कब तक सपने देखेगी?
सबके सपनों की खातिर नारी,
कब तक अपने सपनों को बचेगी?
स्वरचित
सपना (स.अ.)
जनपद औरैया